Tahajjud Ki Namaz Ka Tarika in hindi - तहज्जुद की नियत और दुआ
दोस्तों, आज हम आपको इस्लाम की एक बेहद अज़ीम इबादत, तहज्जुद की नमाज़ (Tahajjud Ki Namaz) के बारे में तफ़सील से बताने जा रहे हैं। यह सिर्फ़ एक नमाज़ नहीं, बल्कि अल्लाह तआला से गहरी क़ुर्बत (नज़दीकी) हासिल करने का एक सुनहरा ज़रिया है। इस पोस्ट में हम जानेंगे कि तहज्जुद की नमाज़ का तरीका (Tahajjud Ki Namaz Ka Tarika) क्या है, इसकी नियत (Niyat) कैसे करें, इसे किस वक्त (Time) अदा किया जाए, इसमें कितनी रकात (Rakat) होती हैं, और इसकी क्या-क्या फ़ज़ीलत (Fazilat) हैं।
अगर आप अल्लाह से अपने ताल्लुक को मज़बूत बनाना चाहते हैं, अपनी दुआओं की क़ुबूलियत चाहते हैं, और अपनी ज़िंदगी में रूहानी सुकून महसूस करना चाहते हैं, तो यह पोस्ट आपके लिए बेहद मुफ़ीद साबित होगी। आपसे गुज़ारिश है कि इस मज़मून को आखिर तक ज़रूर पढ़ें ताकि आपको हर पहलू आसानी से समझ में आ सके और आप इस मुबारक इबादत को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना सकें।
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Tahajjud Ki Namaz Ka Tarika in hindi - तहज्जुद की नियत और दुआ |
1. तहज्जुद की नमाज़: एक मुकम्मल तार्रुफ़
इस्लाम में नमाज़ एक बुनियादी रुक्न (स्तंभ) है, और फ़र्ज़ नमाज़ों के अलावा भी कई नमाज़ें हैं जिनकी अपनी अलग फ़ज़ीलत और अहमियत है। इन्हीं में से एक नमाज़ तहज्जुद की नमाज़ है, जिसे 'सलाम-उल-लैल' यानी रात की नमाज़ भी कहा जाता है। यह उन इबादतों में से है जिसे अल्लाह तआला और उसके प्यारे रसूल ﷺ ने ख़ास तौर पर पसंद फ़रमाया है।
तहज्जुद क्या है?
लफ्ज़ 'तहज्जुद' अरबी ज़बान से लिया गया है जिसका मअनी है "नींद को छोड़ना" या "नींद से बेदार होना"। इस्लामी इस्तलाह (परिभाषा) में, तहज्जुद उस नमाज़ को कहते हैं जो ईशा की नमाज़ के बाद और फज्र से पहले, रात के किसी हिस्से में, ख़ास तौर पर नींद से उठकर अदा की जाती है। यह अल्लाह के साथ एक बंदे के मुनफ़रिद (निजी) और राज़दारानह (गोपनीय) ताल्लुक़ को ज़ाहिर करती है।
अक्सर लोग तहज्जुद और क़याम-उल-लैल (रात में क़याम करना) में फ़र्क नहीं कर पाते। क़याम-उल-लैल एक आम इस्तिलाह है जिसमें रात की कोई भी इबादत शामिल है, जैसे नमाज़, ज़िक्र, दुआ, क़ुरान की तिलावत। लेकिन तहज्जुद ख़ास तौर पर उस नमाज़ को कहते हैं जो सोने के बाद उठकर पढ़ी जाए। यानी, पहले सोना ज़रूरी है, फिर उठकर नमाज़ पढ़ना तहज्जुद कहलाता है। हालाँकि अगर कोई शख्स नींद नहीं भी ले पाता और रात के आख़िरी हिस्से में नमाज़ पढ़ता है, तो भी उसे सवाब मिलता है, लेकिन तहज्जुद का असल मफ़हूम नींद से उठकर ही अदा करने का है।
क़ुरान और तहज्जुद की अहमियत
अल्लाह तआला ने क़ुरान-ए-करीम में कई जगहों पर रात की नमाज़ और रात को बेदार रहने की तरग़ीब दी है। यह इबादत अल्लाह के नेक बंदों की सिफ़ात (गुणों) में से एक है।
सूरह अल-इसरा (17:79) में अल्लाह तआला फ़रमाता है:
"और रात के कुछ हिस्से में तहज्जुद अदा करो, यह तुम्हारे लिए एक अतिरिक्त इबादत है, उम्मीद है कि तुम्हारा रब तुम्हें मकामे महमूद पर फाइज़ करेगा।"
इस आयत में 'मकामे महमूद' का ज़िक्र है, जो एक बहुत ही बुलंद मुकाम है। उलेमा-ए-किराम (विद्वानों) ने बताया है कि यह क़यामत के दिन शफ़ाअत (सिफारिश) का मुकाम है, जो सिर्फ़ हमारे प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद ﷺ को अता किया जाएगा। तहज्जुद की नमाज़ से इस मुकाम की तरफ़ रुख़ करना, इसकी अहमियत को और बढ़ा देता है।
दीगर आयतों में भी रात की इबादत का ज़िक्र है:
- सूरह अज़्-ज़रियात (51:17-18): "वे (मुत्तक़ी लोग) रात को कम सोते थे और सुबह के वक़्त इस्तिग़फ़ार करते थे।"
- सूरह अल-मुज़म्मिल (73:1-4): "ऐ चादर ओढ़ने वाले! रात को खड़े हो जाओ, मगर थोड़ा। आधी रात, या उससे थोड़ा कम, या उससे थोड़ा ज़्यादा। और क़ुरान को ठहर-ठहर कर पढ़ो।" इस सूरह में तो ख़ुद अल्लाह ने नबी-ए-अकरम ﷺ को रात में इबादत करने का हुक्म दिया है, जो हर मुसलमान के लिए एक बेहतरीन नमूना है।
ये आयतें इस बात की गवाही देती हैं कि तहज्जुद की नमाज़ सिर्फ़ एक नफ्ल इबादत नहीं, बल्कि अल्लाह के क़रीब होने और उसकी रज़ा हासिल करने का एक ख़ास ज़रिया है।
हदीस की रोशनी में तहज्जुद
हमारे प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद ﷺ ने तहज्जुद की नमाज़ को बहुत अहमियत दी है और इसे अपनी ज़िंदगी का एक लाज़मी हिस्सा बनाया था। कई हदीसें इसकी फ़ज़ीलत बयान करती हैं:
रिवायत एक (सहीह मुस्लिम):
हज़रत अबू हुरैरा (रज़ि.) से रिवायत है कि नबी-ए-अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया: "फ़र्ज़ नमाज़ों के बाद सबसे अफ़ज़ल नमाज़ रात के दरमियानी हिस्से वाली (यानी तहज्जुद) नमाज़ है।"
यह हदीस साफ़ तौर पर बताती है कि फ़र्ज़ नमाज़ों के बाद, तहज्जुद की नमाज़ सबसे ज़्यादा सवाब वाली है। यह नमाज़ एक बंदे को अल्लाह के सबसे क़रीब लाती है।
रिवायत दो (सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम):
हज़रत अबू हुरैरा (रज़ि.) से ही रिवायत है कि नबी-ए-अकरम ﷺ ने फरमाया: "अल्लाह तआला हर रात को, जब रात का आख़िरी तिहाई हिस्सा बाकी रह जाता है, आसमाने दुनिया (सबसे निचले आसमान) की तरफ़ नाज़िल होता है और फरमाता है: 'कौन है जो मुझसे दुआ करे ताकि मैं उसकी दुआ क़ुबूल करूँ? कौन है जो मुझसे मांगे ताकि मैं उसे अता करूँ? कौन है जो मुझसे बख्शिश चाहे ताकि मैं उसे बख्श दूँ?'"
यह हदीस तहज्जुद के वक़्त की ख़ास अहमियत को उजागर करती है। यह वो मुबारक वक़्त है जब अल्लाह तआला अपने बंदों की तरफ़ ख़ास रहमत और लुत्फ़-ओ-करम के साथ मुतवज्जह (रुजू) होता है। इस वक़्त की दुआएं और इस्तिग़फ़ार बहुत क़ुबूल होते हैं।
कुछ और अहम हदीसें:
- सहीह मुस्लिम: हज़रत आयशा (रज़ि.) से पूछा गया कि नबी-ए-अकरम ﷺ की रात की नमाज़ कैसी थी? उन्होंने फ़रमाया: "आप ﷺ रात को ग्यारह रकात पढ़ते थे, फ़ज्र से पहले, फिर आप ﷺ दो रकात नमाज़ फ़ज्र की सुन्नत पढ़ते।"
- सुनन तिर्मिज़ी: हज़रत बिलाल (रज़ि.) से रिवायत है कि नबी-ए-अकरम ﷺ ने फ़रमाया: "तुम पर रात की नमाज़ लाज़िम कर दी गई है, क्योंकि यह तुमसे पहले नेक लोगों का तरीक़ा था। यह तुम्हारे रब के क़रीब होने का ज़रिया है, गुनाहों को मिटाने वाली है, और बदन से बीमारियों को दूर करने वाली है।"
इन हदीसों से तहज्जुद की अज़ीम फ़ज़ीलत और उसके फ़ायदे साफ़ ज़ाहिर होते हैं, जो रूहानी और जिस्मानी दोनों तरह के हैं।
2. तहज्जुद की नमाज़ का वक्त (Tahajjud Ki Namaz Time)
जैसा कि पहले ज़िक्र किया गया, तहज्जुद की नमाज़ का वक्त ईशा की नमाज़ के बाद शुरू होता है और सुब्ह सादिक (फ़ज्र की अज़ान) से पहले तक रहता है। यह वो वक़्त होता है जब दुनिया गहरी नींद में होती है और अल्लाह का बंदा अपने रब के सामने सिर झुकाता है।
तहज्जुद का अफ़ज़ल वक़्त
हालाँकि तहज्जुद का वक्त रात के किसी भी हिस्से में हो सकता है, लेकिन इसका सबसे अफ़ज़ल और बरकत वाला वक़्त रात का आख़िरी तिहाई हिस्सा है। यह वही वक़्त है जब अल्लाह तआला आसमाने दुनिया पर नाज़िल होकर अपने बंदों से दुआ और इस्तिग़फ़ार तलब करता है।
अफ़ज़ल वक़्त का हिसाब कैसे लगाएं?
रात का आख़िरी तिहाई हिस्सा मालूम करने के लिए, आप ईशा की नमाज़ के वक़्त से लेकर फ़ज्र की अज़ान के वक़्त तक का कुल ड्यूरेशन (अवधि) मालूम करें। फिर उसे तीन हिस्सों में तक़सीम कर दें। तीसरा हिस्सा जो फज्र से पहले आता है, वही तहज्जुद का अफ़ज़ल वक़्त होता है।
मिसाल के तौर पर, अगर ईशा 8 बजे और फ़ज्र 5 बजे है, तो कुल 9 घंटे हुए। 9 घंटे का आख़िरी तिहाई हिस्सा 3 घंटे होगा। यानी फ़ज्र से 3 घंटे पहले (रात 2 बजे से 5 बजे तक) का वक़्त सबसे अफ़ज़ल होगा।
क्या रात में उठना मुमकिन न हो तो पहले पढ़ सकते हैं?
हाँ, अगर आप को यक़ीन हो कि आप रात के आख़िरी हिस्से में नींद से बेदार नहीं हो पाएंगे, तो इस्लामी शरअ में इस बात की गुंजाइश है कि आप ईशा की नमाज़ अदा करने के बाद, वित्र की नमाज़ से पहले तहज्जुद की नियत से नमाज़ पढ़ लें।
यह एक सहूलत (सुविधा) है ताकि कोई भी इस अज़ीम सवाब से महरूम न रहे। हालाँकि, जैसा कि पहले ज़िक्र किया गया है, नींद से उठकर आख़िरी हिस्से में पढ़ने का सवाब और बरकत ज़्यादा है। इसे "क़याम-उल-लैल" तो कहा जा सकता है, लेकिन तहज्जुद का मुकम्मल सवाब और फ़ज़ीलत उसी वक़्त हासिल होती है जब नींद से उठकर इबादत की जाए।
अगर आप हर रात उठने का इरादा रखते हैं, तो बेहतर है कि वित्र की नमाज़ तहज्जुद के बाद पढ़ें, क्योंकि हदीस में आता है कि नबी-ए-अकरम ﷺ ने फ़रमाया: "अपनी आख़िरी नमाज़ रात की वित्र बनाओ।"
3. तहज्जुद की रकात की तादाद (Rakat)
तहज्जुद की नमाज़ नफ़्ल नमाज़ों में से है, और इसकी रकात की तादाद में सहूलत रखी गई है।
कम से कम और ज़्यादा से ज़्यादा रकात
- कम से कम: तहज्जुद की नमाज़ कम से कम 2 रकात होती है। अगर कोई शख्स ज़्यादा नहीं पढ़ सकता तो उसे चाहिए कि कम से कम 2 रकात ही अदा कर ले। नबी-ए-अकरम ﷺ ने फ़रमाया: "जिस रात तुम्हें नींद ग़ालिब हो जाए, तो सो जाओ, फिर जब तुम्हारी आंख खुले, तो दो रकात पढ़ लो।"
- औसतन (मध्यम): अक्सर नबी-ए-अकरम ﷺ 8 रकात अदा फ़रमाते थे। यही तादाद ज़्यादातर मुस्लिम उम्मत में रायज (प्रचलित) है।
- ज़्यादा से ज़्यादा: कुछ रिवायतों में 12 रकात तक का ज़िक्र मिलता है। आप अपनी सहूलत और इस्तिक़ामत (दृढ़ता) के हिसाब से 2, 4, 6, 8, 10 या 12 रकात पढ़ सकते हैं।
एक अहम बात: तहज्जुद की नमाज़ हमेशा दो-दो रकात करके अदा की जाती है। यानी, अगर आप 8 रकात पढ़ना चाहते हैं, तो आप 2 रकात की नियत से चार बार नमाज़ अदा करेंगे। हर दो रकात के बाद सलाम फेर कर दोबारा नियत बांधेंगे।
नबी-ए-अकरम ﷺ का अमल
नबी-ए-अकरम ﷺ की सुन्नत से मालूम होता है कि आप ﷺ अक्सर तहज्जुद में 8 रकात अदा फ़रमाते थे। हज़रत आयशा (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ रमज़ान और ग़ैर-रमज़ान में रात की नमाज़ (तहज्जुद) ग्यारह रकात से ज़्यादा नहीं पढ़ते थे, जिसमें वित्र भी शामिल होती थी। इससे पता चलता है कि आप ﷺ 8 रकात तहज्जुद और 3 रकात वित्र पढ़ा करते थे।
यह ज़हन में रखना चाहिए कि असल मक़सद रकात की तादाद बढ़ाना नहीं, बल्कि ख़ुलूस (ईमानदारी) और ध्यान के साथ अल्लाह की इबादत करना है। अगर आप 2 रकात भी पूरे यक़ीन और लगन से अदा करते हैं, तो वह बेतरतीब तरीक़े से पढ़ी गई ज़्यादा रकातों से बेहतर है।
4. तहज्जुद की नमाज़ की नियत (Tahajjud Ki Niyat)
नियत किसी भी इबादत की बुनियाद होती है। नियत का मतलब सिर्फ़ ज़बान से कुछ अल्फ़ाज़ कहना नहीं, बल्कि दिल में पक्का इरादा करना है कि आप किस नमाज़ को, किसके लिए, और क्यों अदा कर रहे हैं। तहज्जुद की नमाज़ भी एक नफ़्ल नमाज़ है, इसलिए इसकी नियत दूसरे नफ़्ल नमाज़ों की तरह ही होती है।
नियत करने का सही तरीका
नियत करने के लिए कोई ख़ास अल्फ़ाज़ ज़बान से कहना ज़रूरी नहीं है, लेकिन अगर आप कहना चाहें तो कह सकते हैं ताकि दिल में इरादा पुख़्ता हो जाए।
तहज्जुद की नमाज़ की नियत आप इस तरह कर सकते हैं:
- "नियत करता / करती हूँ मैं दो रकात नमाज़ तहज्जुद की, नफ़्ल, वास्ते अल्लाह तआला के, मुँह मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़। अल्लाहू अकबर।"
या सिर्फ़ दिल में इरादा कर लेना काफ़ी है:
- "मैं तहज्जुद की दो रकात नमाज़ पढ़ रहा/रही हूँ।"
ज़रूरी बात यह है कि आपके दिल में यह एहसास हो कि आप अल्लाह की रज़ा के लिए, ख़ास तौर पर तहज्जुद की इबादत अदा करने जा रहे हैं।
दिल में नियत की अहमियत
नबी-ए-अकरम ﷺ ने फ़रमाया: "आमाल का दारोमदार नियतों पर है, और हर शख्स के लिए वही है जिसकी उसने नियत की।" (सहीह बुखारी)
यह हदीस बताती है कि आपकी इबादत की क़ीमत और उसका सवाब आपकी नियत पर मुनहसिर (निर्भर) करता है। अगर आपकी नियत अल्लाह की रज़ा हासिल करना और उससे क़ुर्बत हासिल करना है, तो आपकी नमाज़ बहुत क़ीमती होगी।
5. तहज्जुद की नमाज़ पढ़ने का मुकम्मल तरीका (Tahajjud Ki Namaz Ka Tarika Step by Step)
तहज्जुद की नमाज़ अदा करने का तरीका किसी भी दीगर (अन्य) नफ़्ल नमाज़ की तरह ही है। इसमें कोई ख़ास या मुश्किल तरीक़ा नहीं है। बस कुछ अहम बातों का ख़्याल रखना ज़रूरी है:
क़दम बा क़दम रहबर (Step-by-Step Guide):
- नींद से बेदार होना और नियत:
- रात के आख़िरी हिस्से में नींद से बेदार हों।
- बेदार होते ही अल्लाह का ज़िक्र करें और अल्लाह का शुक्र अदा करें कि उसने आपको इस नेक काम के लिए बेदार किया।
- दिल में नियत करें कि आप तहज्जुद की नमाज़ अदा करने जा रहे हैं। (जैसे ऊपर बताया गया है)।
- वज़ू करना:
- नमाज़ से पहले अच्छी तरह वज़ू करें। वज़ू से जिस्म और रूह दोनों ताज़ा दम (ताज़ा) होते हैं और इबादत में तवज्जो़ (ध्यान) पैदा होती है।
- वज़ू करने के बाद दो रकात तहिय्यत-उल-वज़ू पढ़ लेना भी मुस्तहब (पसंदीदा) है।
- लिबास और जगह की पाकीज़गी:
- यह यक़ीनी बनाएं कि आपका लिबास (कपड़े) और जिस जगह आप नमाज़ अदा करने जा रहे हैं, वह पाक और साफ़ हो।
- नमाज़ की शुरुआत और अदा करने का तरीका (हर दो रकात के लिए):
- नियत: नियत करने के बाद अपने हाथों को कानों तक उठाएं और "अल्लाहू अकबर" कहते हुए हाथों को नाफ़ (नाभि) के नीचे बांध लें।
- सना (Subhanakallahumma): "सुब्हानकल्लाहुम्मा व बि हमदिका व तबा रक्स्मुका व तआला जद्दुका व ला इलाहा गैरुका" पढ़ें।
- ताअव्जुब (A'uzu) और तस्मीया (Bismillah): "अऊज़ु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम" और फिर "बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम" पढ़ें।
- सूरह फ़ातिहा: "अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन..." पूरी सूरत पढ़ें।
- आमीन: सूरह फ़ातिहा के बाद आहिस्ता से "आमीन" कहें।
- क़ुरान की सूरत: सूरह फ़ातिहा के बाद क़ुरान की कोई और सूरत या कुछ आयतें पढ़ें। तहज्जुद में लंबी सूरतें पढ़ना बेहतर माना जाता है, क्योंकि यह अल्लाह से क़ुर्बत के वक़्त को बढ़ाता है।
- रुकू: "अल्लाहू अकबर" कहते हुए रुकू में जाएं। रुकू में "सुब्हान रब्बी अल-अज़ीम" कम से कम तीन बार पढ़ें।
- क़ौमा: रुकू से उठते हुए "समिअल्लाहु लिमन हमिदह" और फिर "रब्बना लकल हम्द" कहें।
- सजदा: "अल्लाहू अकबर" कहते हुए पहले सज्दे में जाएं। सज्दे में "सुब्हान रब्बी अल-आ'ला" कम से कम तीन बार पढ़ें।
- जल्सा: "अल्लाहू अकबर" कहते हुए सज्दे से उठकर दो सज्दों के दरमियान बैठें और फिर "अल्लाहू अकबर" कहते हुए दूसरे सज्दे में जाएं।
- दूसरा सज्दा: दूसरे सज्दे में भी "सुब्हान रब्बी अल-आ'ला" कम से कम तीन बार पढ़ें।
- दूसरी रकात के लिए उठना: "अल्लाहू अकबर" कहते हुए सीधे खड़े हो जाएं। यह आपकी पहली रकात मुकम्मल हुई।
- दूसरी रकात: दूसरी रकात भी पहली रकात की तरह ही अदा करें। यानी, "बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम", सूरह फ़ातिहा, कोई सूरत, रुकू, सज्दा, जल्सा, दूसरा सज्दा।
- क़ायदा आख़िरा: दूसरे सज्दे से उठकर क़ायदे में बैठ जाएं।
- अत्तहिय्यात (तशह्हुद): "अत्तहिय्यातू लिल्लाहि वस्सलवातु वत्तैय्यिबातु..." पढ़ें।
- दरूद शरीफ़: "अल्लाहुम्मा सल्ली अला मुहम्मदिव व अला आलि मुहम्मद..." पढ़ें।
- दुआ: दरूद शरीफ़ के बाद कोई भी मसनून दुआ (जो हदीस में आई हो) पढ़ें, जैसे "अल्लाहुम्मा इन्नी ज़लम्तु नफ़्सी ज़ुलमन कसीरा..." या कोई भी अपनी ज़बान में दुआ करें।
- सलाम: पहले दाएं तरफ़ "अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह" कहें, फिर बाएं तरफ़ "अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह" कहें।
- यह आपकी दो रकात तहज्जुद की नमाज़ मुकम्मल हुई।
- अगर आप ज़्यादा रकात पढ़ना चाहते हैं तो इसी तरह दो-दो रकात करके नमाज़ अदा करते रहें।
तहज्जुद में कौन सी सूरतें पढ़नी चाहिए?
तहज्जुद की नमाज़ में कोई ख़ास सूरत पढ़ना लाज़मी नहीं है। आप क़ुरान की कोई भी सूरत पढ़ सकते हैं जो आपको याद हो। लेकिन कुछ चीज़ें बेहतर मानी जाती हैं:
- लंबी सूरतें: नबी-ए-अकरम ﷺ और सहाबा-ए-किराम (रज़ि.) की सुन्नत से मालूम होता है कि वो तहज्जुद में लंबी सूरतें पढ़ते थे ताकि इबादत में ज़्यादा वक़्त लगे और अल्लाह से मुनाजात का लुत्फ़ बढ़ सके।
- सूरह इख़लास की कसरत: "तहज्जुद नमाज़ के हर रिकात में सूरह फातिहा के बाद तीन बार सूरह इखलास पढ़ सकते हैं इस तरह हर रिकात में कुरान पुरा पढ़ने का सवाब मिलेगा ऐसा करना भी बेहतर है।" यह एक रिवायत पर मबनी (आधारित) है, और इसमें कोई हर्ज नहीं।
- बुजुर्गान-ए-दीन का अमल: कुछ बुजु़र्गान-ए-दीन तहज्जुद की नमाज़ में सूरह यासीन को आठ रकात में बांट कर पढ़ते थे। यह अमल भी सवाब का ज़रिया है, लेकिन ये ज़रूरी नहीं है कि आप भी ऐसा ही करें।
क़िरअत (पढ़ने) का तरीका: बुलंद आवाज़ या आहिस्ता
हज़रत अबू हुरैरा (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ रात की नमाज़ में कभी-कभी बुलंद आवाज़ से क़ुरान पढ़ा करते थे, और कभी-कभी धीरे से भी पढ़ा करते थे।
यह इस बात की दलील है कि तहज्जुद में क़िरअत को आप बुलंद आवाज़ से भी कर सकते हैं और आहिस्ता भी पढ़ सकते हैं। यह आपकी सहूलत और माहौल पर मुनहसिर है। अगर आप अकेले हैं और किसी को तकलीफ़ नहीं होती, तो बुलंद आवाज़ से पढ़ना ज़्यादा अफ़ज़ल है, क्योंकि इसमें दिल ज़्यादा लगता है और नींद भी नहीं आती।
6. तहज्जुद के बाद की दुआ और मुनाजात की अहमियत
तहज्जुद की नमाज़ अदा करने के बाद का वक़्त दुआओं की क़ुबूलियत के लिए सबसे बेहतरीन माना जाता है। यह वह समय है जब अल्लाह अपने बंदे के सबसे क़रीब होता है।
दुआ-ए-तहज्जुद (Tahajjud ki Dua)
तहज्जुद की नमाज़ के बाद आप दोनों हाथ उठाकर अल्लाह से दुआ करें। आप अपनी ज़बान में, अपने दिल के एहसासात के साथ अल्लाह से सब कुछ मांग सकते हैं। इसके अलावा, कुछ मसून दुआएं भी हैं जो पढ़ी जा सकती हैं:
मशहूर दुआ-ए-तहज्जुद (अल्लाह हुम्मा लकल हम्द...):
यह दुआ हदीस में आई है और नबी-ए-अकरम ﷺ अक्सर तहज्जुद के बाद इसे पढ़ते थे।
"اللَّهُمَّ لَكَ الْحَمْدُ أَنْتَ نُورُ السَّمَوَاتِ وَالأَرْضِ وَمَنْ فِيهِنَّ، وَلَكَ الْحَمْدُ أَنْتَ قَيِّمُ السَّمَوَاتِ وَالأَرْضِ وَمَنْ فِيهِنَّ، وَلَكَ الْحَمْدُ أَنْتَ رَبُّ السَّمَوَاتِ وَالأَرْضِ وَمَنْ فِيهِنَّ، وَلَكَ الْحَمْدُ أَنْتَ الْحَقُّ، وَوَعْدُكَ الْحَقُّ، وَقَوْلُكَ الْحَقُّ، وَلِقَاؤُكَ الْحَقُّ، وَالْجَنَّةُ حَقٌّ، وَالنَّارُ حَقٌّ، وَالسَّاعَةُ حَقٌّ، وَالنَّبِيُّونَ حَقٌّ، وَمُحَمَّدٌ حَقٌّ، اللَّهُمَّ لَكَ أَسْلَمْتُ، وَعَلَيْكَ تَوَكَّلْتُ، وَبِكَ آمَنْتُ، وَإِلَيْكَ أَنَبْتُ، وَبِكَ خَاصَمْتُ، وَإِلَيْكَ حَاكَمْتُ، فَاغْفِرْ لِي مَا قَدَّمْتُ وَمَا أَخَّرْتُ وَمَا أَسْرَرْتُ وَمَا أَعْلَنْتُ، أَنْتَ الْمُقَدِّمُ وَأَنْتَ الْمُؤَخِّرُ، لاَ إِلَهَ إِلاَّ أَنْتَ، وَلاَ حَوْلَ وَلاَ قُوَّةَ إِلاَّ بِاللَّهِ"
"ऐ अल्लाह! तमाम तारीफें तेरे ही लिए हैं। तू ही आसमानों और ज़मीन का और जो कुछ उनमें है, सबका नूर है। और तमाम तारीफें तेरे ही लिए हैं। तू ही आसमानों और ज़मीन का और जो कुछ उनमें है, सबका क़ायम रखने वाला है। और तमाम तारीफें तेरे ही लिए हैं। तू ही आसमानों और ज़मीन का और जो कुछ उनमें है, सबका रब है। और तमाम तारीफें तेरे ही लिए हैं। तू हक़ है, और तेरा वादा हक़ है, और तेरी बात हक़ है, और तेरी मुलाक़ात हक़ है, और जन्नत हक़ है, और जहन्नम हक़ है, और क़यामत हक़ है, और नबी (पैगंबर) हक़ हैं, और मुहम्मद ﷺ हक़ हैं। ऐ अल्लाह! मैंने तेरी ही इताअत की, और तुझ ही पर भरोसा किया, और तुझ ही पर ईमान लाया, और तेरी ही तरफ़ रुजू हुआ, और तेरी ही ज़िक्र से झगड़ा किया, और तुझ ही को फ़ैसला करने वाला बनाया। पस मेरे अगले और पिछले गुनाहों को बख़्श दे, जो मैंने छुपाकर किए और जो मैंने ज़ाहिर करके किए। तू ही आगे करने वाला है और तू ही पीछे करने वाला है। तेरे सिवा कोई माबूद नहीं, और न कोई ताक़त है सिवा अल्लाह के।"
(सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम, सुनन तिर्मिज़ी)
यह दुआ अल्लाह की अज़मत, उसकी वहदानियत (अकेलापन), और उसकी ताक़त को बयान करती है, और बंदे के गुनाहों की माफ़ी तलब करती है।
इस्तिग़फ़ार की कसरत
तहज्जुद की नमाज़ के बाद इस्तिग़फ़ार (गुनाहों की माफ़ी मांगना) की ख़ास अहमियत है। जैसा कि क़ुरान में फ़रमाया गया: "वे (मुत्तक़ी लोग) रात को कम सोते थे और सुबह के वक़्त इस्तिग़फ़ार करते थे।"
यह वो वक़्त है जब दिल साफ़ होता है और बंदा अल्लाह की रहमत के ज़्यादा क़रीब होता है। दिल से "अस्तग़फ़िरुल्लाह" या "अस्तग़फ़िरुल्लाह रब्बी मिन कुल्लि ज़मबिव व अतूबु इलैह" का कसरत से विर्द करें।
7. तहज्जुद की नमाज़ की फ़ज़ीलत और बरकात (Fazilat)
तहज्जुद की नमाज़ सिर्फ़ एक नफ़्ल इबादत नहीं, बल्कि इसके बेपनाह फ़ायदे और बरकतें हैं जो दीन और दुनिया दोनों में मिलती हैं।
रूहानी फ़ज़ीलत (Spiritual Benefits):
- अल्लाह से क़ुर्बत (Closeness to Allah): यह नमाज़ बंदे को अल्लाह के सबसे क़रीब लाती है। रात के सुनसान वक़्त में जब सब सो रहे होते हैं, अल्लाह का बंदा अपने रब के सामने खड़ा होता है, तो अल्लाह को यह अमल बहुत पसंद आता है।
- दुआओं की क़ुबूलियत (Acceptance of Duas): यह वक़्त दुआओं की क़ुबूलियत के लिए सबसे बेहतरीन है। हदीस में है कि अल्लाह तआला इस वक़्त पुकारने वाले की पुकार सुनता है, मांगने वाले को अता करता है, और बख्शिश चाहने वाले को बख्श देता है।
- गुनाहों की माफ़ी (Forgiveness of Sins): तहज्जुद गुनाहों का कफ़्फ़ारा है। नबी-ए-अकरम ﷺ ने फ़रमाया: "रात की नमाज़ को लाज़िम कर लो, क्योंकि वह तुमसे पहले नेक लोगों का तरीक़ा था, और वह तुम्हारे रब से क़रीब करने वाली है, गुनाहों को मिटाने वाली है, और गुनाहों से रोकने वाली है।"
- दिल का सुकून (Peace of Heart): जो लोग तहज्जुद अदा करते हैं, उनके दिलों को एक ख़ास सुकून और इत्मीनान मिलता है। यह दुनिया के शोर-शराबे से दूर, अल्लाह के साथ एक निजी लम्हा होता है।
- ईमान की मज़बूती (Strengthening of Faith): मुसलसल तहज्जुद अदा करने से ईमान मज़बूत होता है और अल्लाह पर भरोसा बढ़ता है।
- नफ़्स की तरबियत (Self-Discipline): रात की नींद को छोड़कर उठना नफ़्स पर काबू पाने और मुश्किलात का सामना करने की सलाहियत पैदा करता है।
- तक़वा (Piety): तहज्जुद अदा करने वाला इंसान मुत्तक़ी (परहेज़गार) बनता है और उसमें अल्लाह का ख़ौफ़ और उसकी मुहब्बत पैदा होती है।
दुनियावी फ़ज़ीलत (Worldly Benefits):
- रिज़्क़ में बरकत (Blessings in Sustenance): जो शख्स रात को अल्लाह की इबादत में मशग़ूल होता है, अल्लाह उसके रिज़्क़ में बरकत अता फ़रमाता है और उसके लिए रोज़ी के दरवाज़े खोल देता है।
- मुश्किलात में आसानी (Ease in Difficulties): तहज्जुद अदा करने वालों की दुश्वारियां दूर होती हैं और अल्लाह उनके लिए मुश्किल हालात में आसानी पैदा करता है।
- सेहत और तंदुरुस्ती (Health and Well-being): तहज्जुद के लिए रात में उठना, वज़ू करना और जिस्मानी हरकत करना सेहत के लिए भी मुफ़ीद है। सुकून और इत्मीनान दिमागी सेहत को बेहतर बनाता है।
- चेहरों पर नूरानियत (Radiance on Face): तहज्जुद की नमाज़ पढ़ने वालों के चेहरों पर अल्लाह तआला एक ख़ास किस्म का नूर और चमक अता फ़रमाता है। यह नूर ईमान की अलामत होता है।
- इल्म में इज़ाफ़ा (Increase in Knowledge): रात के आख़िरी वक़्त में दिमाग़ ज़्यादा ताज़ा और एक्टिव होता है। इस वक़्त की इबादत, ज़िक्र और तदब्बुर (चिंतन) इल्म और फ़हम (समझ) में इज़ाफ़ा करता है।
आख़िरत की फ़ज़ीलत (Hereafter Benefits):
- जन्नत में बुलंद दरजात (High Ranks in Paradise): तहज्जुद अदा करने वाले क़यामत के दिन जन्नत में बुलंद दरजात हासिल करेंगे।
- पुल सिरात पर नूर (Light on Sirat Bridge): तहज्जुद की नमाज़ क़यामत के दिन पुल सिरात को आसानी से पार करने के लिए नूर और रोशनी का सबब बनेगी।
- हिसाब में आसानी (Ease in Accountability): इस इबादत की बदौलत बंदे के लिए क़यामत के दिन हिसाब-किताब में आसानी होगी।
8. तहज्जुद के लिए बेदार होने के अमली तरीके (Practical Tips)
बहुत से लोग तहज्जुद की फ़ज़ीलत जानते हैं, लेकिन सुबह उठने में दुश्वारी महसूस करते हैं। कुछ अमली तरीके जो आपको तहज्जुद के लिए बेदार होने में मदद कर सकते हैं:
- नीयत की सच्चाई और इस्तिनाद (Sincerity of Intention and Reliance on Allah):
- सबसे पहले, अल्लाह से सच्चे दिल से दुआ करें कि वह आपको इस नेक काम के लिए उठाएगा। यह अल्लाह का फ़ज़्ल है कि वह अपने बंदे को रात में अपनी इबादत के लिए बेदार करे।
- रात में सोने से पहले पक्का इरादा कर लें कि आपको तहज्जुद के लिए उठना है।
- जल्दी सोना (Sleeping Early):
- अगर आप देर तक जागते रहेंगे, तो सुबह उठना मुश्किल होगा। कोशिश करें कि ईशा की नमाज़ के बाद जल्दी सो जाएं। बेमतलब की बातों और चीज़ों में वक़्त ज़ाया न करें।
- क़ैलूला (Mid-day Nap):
- दोपहर में थोड़ी देर के लिए आराम करना, जिसे 'क़ैलूला' कहते हैं, रात की नींद को मुकम्मल करने और सुबह उठने में मदद करता है। नबी-ए-अकरम ﷺ भी क़ैलूला करते थे।
- गुनाहों से बचना (Avoiding Sins):
- गुनाह, ख़ास तौर पर रात में किए गए गुनाह, रात की इबादत से महरूम कर देते हैं। कोशिश करें कि दिन भर गुनाहों से बचें, इससे दिल साफ़ होता है और अल्लाह की इबादत के लिए रग़बत (इच्छा) पैदा होती है।
- अलार्म का इस्तेमाल (Using Alarms):
- अगर आप अलार्म लगाते हैं, तो उसे अपने बिस्तर से दूर रखें ताकि उसे बंद करने के लिए आपको उठना पड़े। एक से ज़्यादा अलार्म भी लगा सकते हैं।
- सोने से पहले की दुआएं (Supplications before Sleep):
- सोने से पहले अल्लाह का ज़िक्र करें और मसून दुआएं पढ़ें। ये दुआएं आपको शैतान के वसवसों (फुसफुराहट) से बचाती हैं और तहज्जुद के लिए उठने में मदद करती हैं।
- सूरह कहफ़ की आख़िरी पांच आयतें: "सूरह कहफ़ की आखिरी पांच आयात 'इन्नल लज़ीना' से लेकर आखिर तक" सोते वक़्त पढ़ लेने से आदमी जब चाहेगा उठ जाएगा।
- सूरह ज़िलज़ाल: "सूरह ज़िल्ज़ाल तीन मरतबा पढ़ कर सो जाने से आदमी जब चाहे उठ सकता है किसी के जगाने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी।" यह भी एक अमली नुस्खा है।
- आयतल कुर्सी: सोने से पहले आयतल कुर्सी पढ़ने की भी बड़ी फ़ज़ीलत है और यह शैतान से हिफ़ाज़त का ज़रिया है।
- रात का खाना हल्का रखें: रात का खाना ज़्यादा भारी न खाएं, क्योंकि भारी खाना नींद को गहरा कर सकता है और उठना मुश्किल बना सकता है।
9. तहज्जुद से मुतअल्लिक कुछ मसाइल और ग़लतफ़हमियां
तहज्जुद की नमाज़ से मुतअल्लिक कुछ सवाल और ग़लतफ़हमियां भी लोगों में पाई जाती हैं, आइए उन्हें साफ़ करते हैं:
तहज्जुद के दौरान नींद का ग़ालिब आना
मसअला: अगर कोई शख्स तहज्जुद की नमाज़ पढ़ रहा हो और इसी दौरान उस पर नींद ग़ालिब आने लगे या उसे झपकियां आने लगें, तो उसे क्या करना चाहिए?
जवाब: हदीस में आता है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: "जब तुम में से किसी को नमाज़ में नींद आ जाए तो वह सो जाए जब तक कि उसकी नींद न चली जाए, क्योंकि जब नमाज़ पढ़ते वक़्त नींद आ रही हो, तो हो सकता है कि इस्तिग़फ़ार के बजाये वह अपने आप को गालियां दे रहा हो।" (सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम)
इसका मतलब यह है कि अगर आप तहज्जुद के दौरान बहुत ज़्यादा थका हुआ महसूस कर रहे हैं और नींद हावी हो रही है, तो बेहतर है कि आप थोड़ी देर सो जाएं। बाद में उठकर इत्मीनान से नमाज़ पूरी करें। इबादत पूरी तवज्जो़ और ख़ुशू-ओ-ख़ुज़ू (एकाग्रता और विनम्रता) से होनी चाहिए।
फज्र के वक़्त का हो जाना
मसअला: अगर कोई शख्स तहज्जुद की नमाज़ पढ़ रहा हो और इसी दौरान फ़ज्र की अज़ान हो जाए या किसी और तरह से यह पता चले कि सुब्ह सादिक हो गई है, तो ऐसी सूरत में क्या करें?
जवाब: अगर आप नमाज़ पढ़ रहे हैं और फ़ज्र का वक़्त हो जाता है, तो आपको अपनी नमाज़ पूरी कर लेनी चाहिए। उसे तोड़ना नहीं चाहिए। यानी, जो रकात आप पढ़ रहे हैं, उसे मुकम्मल करें और फिर सलाम फेर दें। उसके बाद फ़ज्र की सुन्नतों और फ़र्ज़ नमाज़ की तैयारी करें।
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वित्र और तहज्जुद का ताल्लुक
मसअला: वित्र की नमाज़ और तहज्जुद की नमाज़ का क्या ताल्लुक है? वित्र कब पढ़ी जानी चाहिए?
जवाब: वित्र की नमाज़ ईशा के बाद से लेकर फ़ज्र से पहले तक पढ़ी जा सकती है। नबी-ए-अकरम ﷺ ने फ़रमाया: "अपनी आख़िरी नमाज़ रात की वित्र बनाओ।"
- अगर आप तहज्जुद के लिए रात में उठने का यक़ीन रखते हैं: तो आप ईशा की नमाज़ के साथ वित्र न पढ़ें, बल्कि तहज्जुद की नमाज़ अदा करने के बाद वित्र पढ़ें, ताकि वित्र आपकी आख़िरी नमाज़ बन जाए।
- अगर आपका रात में उठना तय नहीं है या आप को शक है: तो ईशा की नमाज़ के साथ ही वित्र पढ़ लेना बेहतर है, ताकि आप वित्र की नमाज़ से महरूम न रहें। अगर बाद में आप तहज्जुद के लिए उठ जाते हैं, तो आप तहज्जुद की नमाज़ अदा कर सकते हैं, लेकिन वित्र को दोबारा नहीं पढ़ा जाएगा।
क्या तहज्जुद का कोई बदल है?
मसअला: कुछ लोग यह पूछते हैं कि क्या तहज्जुद का बदल (विकल्प) किसी दूसरे अमल में है?
जवाब: रात के आख़िरी हिस्से में नींद को छोड़कर अल्लाह को याद करने का कोई मुकम्मल बदल नहीं हो सकता। यह वक़्त अपनी बेपनाह फ़ज़ीलत रखता है और अल्लाह से राज़दारानह गुफ़्तगू का एक अनोखा मौक़ा फ़राहम करता है।
लेकिन कुछ चीज़ें मन्कूल (रिवायत की गई) हैं जिसे अगर इख्तियार किया जाए तो तहज्जुद की नमाज़ के सवाब में कुछ कमी को पूरा किया जा सकता है, या उससे मुशाबिह (समान) सवाब मिल सकता है:
- रात में सोते वक़्त सूरह बकरा की आख़िरी दो आयतें पढ़ना: नबी-ए-अकरम ﷺ ने फ़रमाया: "जिसने रात में सूरह बकरा की आख़िरी दो आयतें पढ़ीं, तो वे उसके लिए काफ़ी होंगी।" (सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम) उलेमा ने इसकी तशरीह में कहा है कि यह रात की इबादत के बदले भी हो सकती हैं, यानी उसे रात में क़याम का सवाब मिल सकता है।
- तहज्जुद की नमाज छूट जाने पर दिन में क़ज़ा करना: अगर किसी वजह से आपकी तहज्जुद की नमाज़ छूट जाती है और आप सुबह नहीं उठ पाते, तो आप ज़ुहर की नमाज़ से पहले या चाश्त (इशराक़ के बाद) के वक़्त चार रकात नफ़्ल नमाज़ पढ़ सकते हैं। नबी-ए-अकरम ﷺ जब किसी वजह से रात में अपनी तहज्जुद की नमाज़ पूरी नहीं कर पाते थे, तो वह दिन में ज़ुहर से पहले 12 रकात अदा फ़रमाते थे। यह उस वक़्त का सवाब नहीं है जो रात के आख़िरी हिस्से में मिलता है, लेकिन यह एक तरह से इसकी तलाफ़ी (भरपाई) है और छूट जाने वाले सवाब को हासिल करने की कोशिश है।
यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि यह बदल सिर्फ़ उन्हीं हालात में है जब आप किसी मजबूरी या उज़्र (बहाने) की वजह से तहज्जुद अदा न कर पाएं। जानबूझकर तहज्जुद को छोड़ना और उसका बदल ढूंढना सही नहीं है।
10. हमारी ज़िंदगी में तहज्जुद की नमाज़ की जगह
तहज्जुद की नमाज़ को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाना आसान नहीं, लेकिन यह यक़ीनन मुमकिन है। यह आदत हमें दुनियावी उलझनों से ऊपर उठकर अल्लाह से एक ख़ास रिश्ता क़ायम करने में मदद करती है।
- शुरुआत छोटी करें: अगर आप तहज्जुद शुरू कर रहे हैं, तो दो रकात से शुरू करें। जब यह आदत बन जाए तो धीरे-धीरे रकातें बढ़ाएं।
- इस्तिक़ामत (निरंतरता) सबसे अहम: रोज़ाना थोड़ा-थोड़ा करना, कभी-कभी ज़्यादा करने से बेहतर है। इबादत में निरंतरता अल्लाह को ज़्यादा पसंद है।
- अल्लाह से मदद मांगें: हर रात सोने से पहले अल्लाह से दुआ करें कि वह आपको तहज्जुद के लिए बेदार करे। यह अल्लाह की तौफ़ीक़ (कृपा) के बिना मुमकिन नहीं है।
- अपनी ज़िंदगी में तब्दिली महसूस करें: जो शख्स तहज्जुद को अपनी आदत बना लेता है, वह अपनी ज़िंदगी में रूहानी और दुनियावी दोनों तरह की बरकतें महसूस करता है। उसका दिल सुकून पाता है, उसकी दुआएं क़ुबूल होती हैं, और उसके मसाइल में आसानी पैदा होती है।
यह इबादत हमारे दीन की बुनियाद को मज़बूत करती है और हमें एक बेहतर मुसलमान बनने की तरफ़ धकेलती है। यह हमें अल्लाह पर तवक्कुल (भरोसा) करना सिखाती है, और दुनिया की परेशानियों से दूर, एक ऐसे रिश्ते की तरफ़ ले जाती है जहाँ सिर्फ़ सुकून और रहमत है।
11. ख़ुलासा (Conclusion)
दोस्तों, तहज्जुद की नमाज़ इस्लाम की एक अज़ीम और बरकत वाली इबादत है, जो हमें अल्लाह तआला के सबसे क़रीब ले जाती है। यह नींद और सुकून को छोड़कर, रात के उस ख़ास हिस्से में अल्लाह के सामने खड़े होने का नाम है, जब उसकी रहमत ख़ास तौर पर नाज़िल होती है।
हमने इस मुकम्मल मज़मून में तहज्जुद की नमाज़ का तरीका (Tahajjud Ki Namaz Ka Tarika), इसकी नियत (Niyat), अफ़ज़ल वक्त (Time), रकातों की तादाद (Rakat), और इसकी बेमिसाल फ़ज़ीलत (Fazilat) को तफ़सील से बयान किया है। हमने यह भी सीखा कि तहज्जुद के लिए बेदार होने के क्या अमली तरीके हैं और इससे मुतअल्लिक़ आम मसाइल और ग़लतफ़हमियां क्या हैं।
याद रखें, तहज्जुद सिर्फ़ एक नमाज़ नहीं, बल्कि अल्लाह के साथ एक गहरे और ख़ालिस रिश्ते की अलामत है। यह दिल को नूरानी बनाने, गुनाहों को मिटाने, दुआओं को क़ुबूल कराने, और आख़िरत में बुलंद मक़ाम हासिल करने का ज़रिया है।
आप भी अपनी ज़िंदगी में इस मुबारक अमल को शामिल करें। चाहे शुरुआत दो रकात से ही क्यों न हो, इस्तिक़ामत के साथ इसकी पाबंदी करें। इंशाअल्लाह, आप अपनी ज़िंदगी में ज़बरदस्त तब्दीलियां महसूस करेंगे।
इस पोस्ट को अपने दोस्तों, अज़ीज़ों और उन तमाम लोगों के साथ ज़रूर शेयर करें जिन्हें तहज्जुद की अहमियत और तरीके के बारे में जानने की ज़रूरत है। अल्लाह हम सबको तहज्जुद की पाबंदी करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन!
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12. अक्सर पूछे जाने वाले सवालात (FAQs)
Q1: तहज्जुद की नमाज का सही वक़्त क्या है?
A1: तहज्जुद की नमाज आधी रात के बाद से लेकर सुबह सादिक से पहले तक पढ़ी जाती है। सबसे अफज़ल वक़्त आखिरी तिहाई रात है।
Q2: तहज्जुद की नमाज कितनी रकात होती है?
A2: तहज्जुद की नमाज कम से कम 2 रकात और ज्यादा से ज्यादा 12 रकात तक होती है। अधिकतर लोग 8 रकात पढ़ते हैं।
Q3: तहज्जुद की नमाज की नियत कैसे करें?
A3: जैसे नफ्ल नमाज की नियत करते हैं वैसे ही तहज्जुद की 2 रकात की नियत करें, फर्क सिर्फ इतना है कि इसमें तहज्जुद का इरादा करना होता है।
Q4: तहज्जुद की नमाज में कौन-कौन सी सूरह पढ़नी चाहिए?
A4: कोई खास सूरह जरूरी नहीं। जो सूरह याद हो वही पढ़ें। बेहतर है कि लंबी सूरहें या हर रकात में तीन बार सूरह इखलास पढ़ें।
Q5: अगर नींद की वजह से उठ न पाए तो क्या करें?
A5: अगर रात में उठने का यकीन न हो तो ईशा की नमाज के बाद वित्र से पहले तहज्जुद की नियत से 2 या 4 रकात नफ्ल पढ़ लेना बेहतर है।
Q6: क्या तहज्जुद की नमाज का कोई बदल है?
A6: रात में सोने से पहले सूरह बकरा की आखिरी दो आयतें पढ़ना और चाश्त के समय चार रकात पढ़ लेना तहज्जुद का बदल माना गया है।
Q7: तहज्जुद की नमाज पढ़ते वक्त अगर फज्र का वक़्त हो जाए तो क्या करें?
A7: अगर फज्र का वक़्त हो जाए तो जो रकात पढ़ रहे हैं उसे पूरा कर लें और फिर फज्र की तैयारी करें।
Q8: तहज्जुद के लिए कैसे उठें?
A8: सोने से पहले दुआ करें, नियत मजबूत रखें, सूरह कहफ़ की आखिरी 5 आयतें या सूरह ज़िलज़ाल तीन बार पढ़ें — इससे आसानी से उठने में मदद मिलती है।