Surah Mulk (Tabarakal lazi) In Hindi | सूरह तबारकल्लजी हिन्दी में, फजीलत और तर्जुमा

कुरान पाक की वह अज़ीम सूरह जो अपने पढ़ने वाले के लिए शिफ़ारिश करेगी और उसे अल्लाह के हुक्म से कब्र के अज़ाब की हर शक्ल से बचाएगी।
सूरह मुल्क़: कुरान का एक मुकद्दस तोहफ़ा
अस्सलामुअलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु। www.islamicpedia.blog पर आपका तहे दिल से इस्तकबाल है। आज हम कुरान मजीद की एक निहायत ही अहम और फ़ज़ीलत वाली सूरह, सूरह मुल्क़ (Surah Al-Mulk) के बारे में विस्तार से जानेंगे। इसे अक्सर "तबारकल्लज़ी" (Tabarakallazi) के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसकी पहली आयत इसी मुबारक लफ्ज़ से शुरू होती है।
आप क्या-क्या जानेंगे?
- कुरान में स्थान: यह कुरान पाक की 67वीं सूरह है।
- पारा (Juz): यह 29वें पारे में स्थित है।
- आयतें: सूरह मुल्क में कुल 30 आयतें हैं।
- नुज़ूल: यह एक मक्की सूरह है, यानी यह मक्का में इस्लाम के शुरुआती दौर में नाज़िल हुई थी।
अहादीस में इस सूरह की बहुत बड़ी फ़ज़ीलत बताई गई है। यह अपने पढ़ने वाले को कब्र के अज़ाब से बचाने वाली (मानعة من عذاب القبر) और क़यामत के दिन उसके लिए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से शिफ़ारिश करेगी, यहाँ तक कि उसकी मग़फ़िरत हो जाए। इस पोस्ट में हम सूरह मुल्क हिन्दी में (Surah Mulk in Hindi), इसका तर्जुमा, तफ़सीर और इसकी बेशुमार फ़ज़ीलतों पर रौशनी डालेंगे ताकि आप इस मुबारक सूरह से ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठा सकें।
सूरह मुल्क अरबी में (Surah Mulk Full Arabic Text)
यह सूरह मुल्क़ का अरबी पाठ है। अगर आप अरबी पढ़ सकते हैं, तो सबसे बेहतर है कि इसे अरबी में ही तिलावत करें, क्योंकि इसमें ज़्यादा सवाब है और तलफ़्फ़ुज़ की ग़लतियों से बचा जा सकता है।
सूरह मुल्क हिन्दी उच्चारण (Surah Mulk Transliteration in Hindi)
जो लोग अरबी पढ़ नहीं सकते, उनके लिए यह हिन्दी उच्चारण दिया गया है। ध्यान दें कि अरबी के सही तलफ़्फ़ुज़ को हिन्दी में पूरी तरह उतारना मुश्किल है, इसलिए किसी क़ारी (क़ुरआन पढ़ने वाले) से सुनकर अपने उच्चारण को बेहतर बनाना सबसे अच्छा रहेगा।
बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम
- तबा रकल लज़ी बियदि हिल मुल्क वहुवा अला कुल्लि शय इन क़दीर
- अल्लज़ी खलाक़ल मौता वल हयात लियब लुवकुम अय्युकुम अहसनु अमला वहुवल अज़ीज़ुल गफूर
- अल्लज़ी खलक़ा सबआ समावातिन तिबाक़ा मातरा फ़ी खल्किर रहमानि मिन तफ़ावुत फ़र जिइल बसरा हल तरा मिन फुतूर
- सुम्मर जिइल बसरा कर रतैनी यन्क़लिब इलैकल बसरु खासिअव वहुवा हसीर
- वलक़द ज़ैयन्नस समाअद दुनिया बिमसा बीहा वजा अल्नाहा रुजूमल लिश शयातीनि वअअ’तदना लहुम अज़ाबस सईर
- वलिल लज़ीना कफरू बिरब बिहिम अजाबू जहन्नम वबिअ’ सल मसीर
- इज़ा उल्कु फ़ीहा समिऊ लहा शहीक़व वहिया तफूर
- तकादु तमै यज़ु मिनल गय्ज़ कुल्लमा उल्किया फ़ीहा फौजुन सअलहुम खज़ानतुहा अलम यअ’तिकुम नज़ीर
- क़ालू बला क़द जाअना नज़ीर फ़कज ज़ब्ना वकुलना मा नज्ज़लल लाहू मिन शयअ’ इन अन्तुम इल्ला फ़ी दलालिन कबीर
- व क़ालू लौ कुन्ना नस मऊ औ नअ’किलू मा कुन्ना फ़ी अस हाबिस सईर
- फ़अ’तरफु बिज़म बिहिम फ़ सुहक़ल लिअस हाबिस सईर
- इन्नल लज़ीना यख्शौना रब्बहुम बिल गैबि लहुम मग फिरतुव व अजरुन कबीर
- व असिररू क़ौलकुम अविज हरु बिह इन्नहू अलीमुम बिज़ातिस सुदूर
- अला यअ’लमु मन खलक़ वहुवल लतीफुल ख़बीर
- हुवल लज़ी जअला लकुमुल अरदा ज़लूलन फमशू फ़ी मना किबिहा वकुलू मुहम्मदन रिज्किह व इलय हिन् नुशूर
- अ अमिन्तुम मन फिस समाइ अय यखसिफा बिकुमुल अरदा फ़इज़ा हिया तमूर
- अम अमिन्तुम मन फिस समाइ अय युरसिला अलैकुम हासिबा फ़स तअ’लमूना कैफा नज़ीर
- वलक़द कज्ज़बल लज़ीना मिन क़abलिहिम फ़कैफा काना नकीर
- अवलम यरौ इलत तैरि फौक़हुम साफ़ फातिव व याक्बिज्न मा युम्सिकु हुन्ना इललर रहमान इन्नहू बिकुल्लि शय इम बसीर
- अम्मन हाज़ल लज़ी हुवा जुन्दुल लकुम यनसुरकुम मिन दूनिर रहमान इनिल कफिरूना इल्ला फ़ी गुरूर
- अम्मन हाज़ल लज़ी यर ज़ुकु कुम इन अम्सका रिज्हक़ बल लज्जू फ़ी उतुव विव वनुफूर
- अफ़मय यम्शी मुकिब्बन अला वजहिही अहदा अम्मय यम्शी सविय्यन अला सिरातिम मुस्तक़ीम
- कुल हुवल लज़ी अन शअकुम वजा अला लकुमुस समआ वल अबसारा वल अफ इदह क़लीलम मा तश्कुरून
- कुल हुवल लज़ी ज़रा अकुम फिल अरदि व इलैहि तुह्शरून
- व यक़ूलूना मता हाज़ल वअ’दू इन कुन्तुम सादिक़ीन
- कुल इन्नमल इल्मु इन्दल लाहि व इन्नमा अना नजीरुम मुबीन
- फ़लम्मा रऔहु जुल फतन सीअत वुजूहुल लज़ीना कफरू व क़ीला हाज़ल लज़ी कुन्तुम बिही तद दऊन
- कुल अरा अय्तुम इन अहलका नियल लाहू वमम मइया अव रहिमना फमय युजीरुल काफिरीना मिन अजाबिन अलीम
- कुल हूवर रहमानु आमन्ना बिही व अलैहि तवक कलना फ़ सतअ’ लमूना मन हुवा फ़ी दलालिम मुबीन
- कुल अरा अय्तुम इन अस्बहा मा उकुम गौरन फ़मय यअ तीकुम बिमा इम मईन
सूरह मुल्क का हिन्दी तर्जुमा (Surah Mulk Translation in Hindi)
सूरह मुल्क़ के गहरे मायने समझने के लिए उसका सही तर्जुमा जानना बेहद ज़रूरी है। यह तर्जुमा आपको आयतों में छिपे अल्लाह के पैगाम को समझने में मदद करेगा।
अल्लाह के नाम से जो निहायत मेहरबान, बहुत रहम वाला है।
- बड़ी बरकत वाला है वह जिसके हाथ में (तमाम कायनात की) बादशाही है और वह हर चीज़ पर पूरी तरह क़ादिर (समर्थ) है।
- जिसने मौत और ज़िन्दगी को पैदा किया ताकि तुम्हें आज़माए कि तुममें से काम में सबसे अच्छा कौन है और वह ज़बरदस्त ताक़तवर (और) बहुत बख्शने वाला है।
- जिसने सात आसमान एक के ऊपर एक बनाए। तुम रहमान की (इस) पैदावार में कोई कमी नहीं देखोगे। तो फिर आँख उठाकर देख, क्या तुझे कोई शिगाफ़ (दराड़) नज़र आती है?
- फिर दोबारा आँख उठाकर देख, (हर बार तेरी) नज़र नाकाम और थक कर तेरी तरफ़ पलट आएगी।
- और हमने नीचे वाले (पहले) आसमान को (तारों के) चिराग़ों से सजाया है और हमने उन्हें शैतानों के मारने का ज़रिया बनाया और हमने उनके लिए दहकती हुई आग का अज़ाब तैयार कर रखा है।
- और जिन लोगों ने अपने परवरदिगार का इनकार किया, उनके लिए जहन्नम का अज़ाब है और वह (बहुत) बुरा ठिकाना है।
- जब ये लोग उसमें डाले जाएँगे, तो उसकी बड़ी चीख़ सुनेंगे और वह (जहन्नम) जोश मार रही होगी।
- बल्कि गोया मारे जोश के फट पड़ेगी। जब उसमें (उनका) कोई गिरोह डाला जाएगा तो उनसे दारोग़ए जहन्नम (जहन्नम के निगरान फ़रिश्ते) पूछेंगे: "क्या तुम्हारे पास कोई डराने वाला पैग़म्बर नहीं आया था?"
- वह कहेंगे: "हाँ, हमारे पास डराने वाला तो ज़रूर आया था, मगर हमने उसको झुठला दिया और कहा कि अल्लाह ने तो कुछ नाज़िल ही नहीं किया। तुम तो बड़ी (गहरी) गुमराही में (पड़े) हो।"
- और (ये भी) कहेंगे: "अगर (उनकी बात) सुनते या समझते, तब तो (आज) दोज़ख़ियों में न होते।"
- ग़रज़, वह अपने गुनाह का इक़रार कर लेंगे और दोज़ख़ियों को अल्लाह की रहमत से दूरी है।
- बेशक जो लोग अपने परवरदिगार से बिन देखे डरते हैं, उनके लिए बख़्शिश और बड़ा भारी अज्र (इनाम) है।
- और तुम अपनी बात छिपकर कहो या फिर खुल्लम खुल्ला, वह तो दिल के भेदों तक से ख़ूब वाक़िफ़ है।
- भला जिसने पैदा किया, वह (सब कुछ) जानता क्यों न होगा? और वह तो बड़ा बारीकबीन (सूक्ष्मदर्शी), सब ख़बर रखने वाला है।
- वही तो है जिसने ज़मीन को तुम्हारे लिए नरम (और हमवार) कर दिया, तो उसके अतराफ़ व जवानिब में चलो फिरो और उसकी (दी हुई) रोज़ी खाओ। और फिर उसी की तरफ़ (क़ब्र से उठ कर) जाना है।
- क्या तुम उस हस्ती से जो आसमान में है, इस बात से बेख़ौफ़ हो कि तुमको ज़मीन में धंसा दे, फिर वह अचानक उलट-पुलट करने लगे?
- या तुम इस बात से बेख़ौफ़ हो कि जो आसमान में (बादशाही करता) है, कि तुम पर पत्थर भरी आँधी चलाए? तो तुम्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगा कि मेरा डराना कैसा है।
- और जो लोग उनसे पहले थे, उन्होंने (भी रसूलों को) झुठलाया था, तो (देखो) कि मेरी नाख़ुशी (अज़ाब) कैसी थी।
- क्या उन लोगों ने अपने सरों पर चिड़ियों को उड़ते नहीं देखा जो परों को फैलाए रहती हैं और समेट लेती हैं? कि अल्लाह के सिवा उन्हें कोई नहीं थामे रह सकता है। बेशक वह हर चीज़ को देख रहा है।
- भला अल्लाह के सिवा ऐसा कौन है जो तुम्हारी फ़ौज बनकर तुम्हारी मदद करे? काफ़िर लोग तो धोखे ही (धोखे) में हैं।
- भला अल्लाह अगर अपनी (दी हुई) रोज़ी रोक ले तो ऐसा कौन है जो तुम्हें रिज़्क दे? मगर ये कुफ्फ़ार तो सरकशी और नफ़रत (के भँवर) में फँसे हुए हैं।
- भला जो शख़्स औंधे मुँह के बल चले, वह ज़्यादा हिदायत याफ़्ता होगा? या वह शख़्स जो सीधा, बराबर, राह-ए-रास्त पर चल रहा हो?
- (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अल्लाह तो वही है जिसने तुमको पैदा किया और तुम्हारे लिए सुनने और देखने की क़ुव्वत (कान और आँखें) और दिल बनाए। तुम शुक्रिया थोड़े ही दिखाते हो।
- कह दो कि वही तो है जिसने तुमको ज़मीन में फैला दिया और तुम सब उसी के सामने जमा किए जाओगे।
- कुफ्फ़ार कहते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो (आख़िर) ये वायदा (क़यामत का) कब (पूरा) होगा?
- (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (इसका) इल्म तो बस अल्लाह ही को है और मैं तो सिर्फ़ साफ़-साफ़ (अज़ाब से) डराने वाला हूँ।
- तो जब ये लोग उसे करीब से देख लेंगे, (ख़ौफ़ से) काफ़िरों के चेहरे बिगड़ जाएँगे और उनसे कहा जाएगा: "ये वही है जिसे तुम (दुनिया में) माँग रहे थे (यानी अज़ाब)!"
- (ऐ रसूल) तुम कह दो, "भला देखो तो अगर अल्लाह मुझको और मेरे साथियों को हलाक कर दे या हम पर रहम फ़रमाए, तो काफ़िरों को दर्दनाक अज़ाब से कौन पनाह देगा?"
- तुम कह दो कि वही (अल्लाह) बड़ा रहम करने वाला है जिस पर हम ईमान लाए हैं और हमने तो उसी पर भरोसा कर लिया है, तो अनक़रीब ही तुम्हें मालूम हो जाएगा कि कौन खुली हुई गुमराही में (पड़ा) है।
- (ऐ रसूल) तुम कह दो कि भला देखो तो कि अगर तुम्हारा पानी ज़मीन के अन्दर चला जाए, कौन ऐसा है जो तुम्हारे लिए बहता हुआ पानी (चश्मा) बहा लाएगा?
सूरह मुल्क़ की अज़ीम फ़ज़ीलत और फ़ायदे (Virtues & Benefits of Surah Mulk)
सूरह मुल्क़ कुरान पाक की उन चुनिंदा सूरतों में से है जिसकी फ़ज़ीलत सीधे तौर पर हदीस-ए-नबवी ﷺ में बयान की गई है। इसकी तिलावत के कई रूहानी और दुन्यवी फ़ायदे हैं।
1. कब्र के अज़ाब से हिफ़ाज़त (Protector from Grave Punishment)
यह सूरह की सबसे बड़ी और मशहूर फ़ज़ीलत है। नबी-ए-अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया:
"क़ुरआन में एक सूरह है जिसमें तीस आयतें हैं, यह अपने पढ़ने वाले की शिफ़ारिश करती रही यहाँ तक कि उसे बख़्श दिया गया। यह सूरह 'तबारकल्लज़ी बि यदहि-हिल-मुल्क' है।"
(सुनन तिर्मिज़ी: 2891, अबू दाऊद: 1400, इब्न माजा: 3786)
एक और हदीस में है कि:
"इब्न अब्बास (र.अ.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया: 'यह ( सूरह मुल्क) हिफ़ाज़त करने वाली है, आज़ाद करने वाली है अज़ाब-ए-कब्र से।'"
(सुनन तिर्मिज़ी: 2890)
इन अहादीस से यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि जो शख़्स सूरह मुल्क़ को रात को सोने से पहले नियमित रूप से पढ़ता है, अल्लाह तआला उसे कब्र के अज़ाब से बचाते हैं। कब्र का अज़ाब बहुत ही भयानक होता है, और यह सूरह उस अज़ाब से ढाल बन जाती है।
2. पढ़ने वाले के लिए शिफ़ारिश (Intercessor for its Reciter)
उपर्युक्त हदीस में यह भी ज़िक्र है कि सूरह मुल्क़ अपने पढ़ने वाले के लिए शिफ़ारिश करेगी। क़यामत के दिन जब कोई शिफ़ारिश करने वाला नहीं होगा, तब यह सूरह अल्लाह से उसके बंदे की बख़्शिश की दरख़ास्त करेगी। यह एक बहुत बड़ी नेमत है जो हमें सिर्फ़ इसकी नियमित तिलावत से मिल सकती है।
3. गुनाहों की मग़फ़िरत (Forgiveness of Sins)
जब कोई सूरह इतनी शिफ़ारिश करती है कि मग़फ़िरत हो जाए, तो इसका मतलब है कि यह छोटे-मोटे गुनाहों को माफ़ करवाने का सबब भी बनती है। इसके ज़रिये अल्लाह की रहमत और मग़फ़िरत हासिल होती है।
4. अल्लाह की कुदरत पर ग़ौर (Reflection on Allah's Omnipotence)
यह सूरह अल्लाह की अज़ीम कुदरत, उसके बादशाही और कायनात के हर पहलू पर सोचने की दावत देती है। आसमान, ज़मीन, परिंदे, पानी और मौत-ओ-हयात की तखलीक पर ग़ौर करने से ईमान ताज़ा होता है और अल्लाह से क़ुर्बत बढ़ती है।
सूरह मुल्क़ की मुख़्तसर तफ़सीर (Key Themes of Surah Al-Mulk)
सूरह मुल्क़ की आयतें अल्लाह तआला की अज़मत, कुदरत और उसके बनाए हुए निज़ाम की गवाही देती हैं। इसकी हर आयत में गहरी हिकमत और दावत-ए-फ़िक्र मौजूद है:
- अल्लाह की बादशाही और कुदरत: सूरह की शुरुआत ही अल्लाह की मुकम्मल बादशाही और उसकी हर चीज़ पर कुदरत से होती है। वह ही है जिसने मौत और ज़िन्दगी को पैदा किया ताकि इंसानों को आज़माया जा सके।
- कायनात की तखलीक: अल्लाह ने किस तरह सात आसमानों को तबक़ात में बनाया, और ज़मीन को इंसान के लिए 'ज़लूल' (नरम और आसान) बना दिया ताकि वह उस पर चले और अल्लाह की दी हुई रोज़ी तलाश करे। परिंदों के उड़ने में भी अल्लाह की कुदरत का अक्स दिखाया गया है।
- जहन्नम का बयान: सूरह में जहन्नम की शिद्दत और दर्दनाक अज़ाब का बयान है, और यह भी बताया गया है कि दोज़ख़ी अपने कुफ़्र और नाफ़रमानी का इक़रार करेंगे कि अगर वे सुनते या समझते, तो आज दोज़ख़ी न होते।
- अल्लाह के पैग़म्बरों की अहमियत: जहन्नम के दारोग़े (निगरान) का सवाल कि "क्या तुम्हारे पास कोई डराने वाला नहीं आया था?" इस बात को उजागर करता है कि अल्लाह ने हर कौम में हिदायत के लिए रसूल भेजे।
- अल्लाह का इल्म: सूरह में अल्लाह के इल्म की वुसअत का ज़िक्र है कि वह दिल के भेदों से भी वाक़िफ़ है और हर चीज़ का इल्म रखता है।
- तौहीद का पैगाम: बार-बार यह सवाल उठाया गया है कि अल्लाह के सिवा कौन है जो तुम्हारी मदद कर सकता है या तुम्हें रोज़ी दे सकता है? यह बंदे को तौहीद (अल्लाह की वहदानियत) की तरफ़ दावत देती है।
- क़यामत और जवाबदेही: सूरह क़यामत के दिन की हक़ीक़त और हिसाब-किताब के दिन की याद दिलाती है, जब सब को अल्लाह के सामने जमा किया जाएगा।
- पानी की नेमत: सूरह के आख़िर में पानी की अहमियत और यह सवाल कि अगर अल्लाह इस नेमत को छीन ले तो कौन है जो इसे वापस ला सकता है, अल्लाह की कुदरत और बंदे की बेबसी को ज़ाहिर करता है।
सूरह मुल्क़ कब पढ़नी चाहिए? (When to Recite Surah Mulk?)
हदीस के मुताबिक़, सूरह मुल्क़ को हर रात सोने से पहले पढ़ना मुस्तहब (पसंदीदा) है। हज़रत जाबिर (र.अ.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जब तक सूरह 'अल-सज्दा' और सूरह 'अल-मुल्क' न पढ़ लेते, तब तक सोते नहीं थे। (तिर्मिज़ी: 2892)
एक अहम टिप:
- हर रात सोने से पहले सूरह मुल्क़ की तिलावत करने को अपनी आदत बना लें।
- अगर पूरी सूरह पढ़ना मुश्किल हो, तो शुरू में कुछ आयतें पढ़ें और धीरे-धीरे पूरा करने की कोशिश करें।
- समझकर पढ़ने की कोशिश करें, ताकि इसके माअनी (अर्थ) आपके दिल पर असर करें।
सूरह मुल्क़ याद करने के आसान तरीक़े (Easy Ways to Memorize Surah Mulk)
अगर आपने अभी तक सूरह मुल्क़ याद नहीं की है, तो घबराइए नहीं! यह 30 आयतों की सूरह है जिसे याद करना इतना मुश्किल नहीं है। यहाँ कुछ आसान तरीक़े दिए गए हैं:
- छोटी-छोटी आयतें तोड़कर याद करें: एक बार में एक या दो आयतें याद करें, उन्हें कई बार दोहराएँ। जब वह याद हो जाए तो अगली आयत याद करें।
- बार-बार सुनें: किसी अच्छे क़ारी (जैसे मिशारी राशिद अल-अफासी, अब्दुल बासित अब्दुल समद, या साद अल-गामदी) की आवाज़ में सूरह मुल्क़ को बार-बार सुनें। सुनते-सुनते याद करना आसान हो जाता है।
- अर्थ समझकर याद करें: जब आप आयतों का मतलब समझेंगे, तो उन्हें याद रखना ज़्यादा आसान और मज़ेदार हो जाएगा। यह आपको आयतों को सही संदर्भ में समझने में भी मदद करेगा।
- नमाज़ में पढ़ें: जब कुछ आयतें याद हो जाएँ, तो उन्हें अपनी नफ्ल नमाज़ों (सुन्नत या इशा के बाद की नमाज़) में पढ़ना शुरू कर दें। इससे वह और पक्की हो जाएगी।
- रोज़ाना वक़्त मुकर्रर करें: हर दिन एक मुकर्रर (निश्चित) वक़्त पर सूरह मुल्क़ को याद करने के लिए बैठें, चाहे वह 10-15 मिनट ही क्यों न हो। पाबंदी से किया गया काम ही कामयाब होता है।
- किसी को सुनाएँ: अगर आपके पास कोई ऐसा शख़्स है जो अरबी पढ़ सकता हो या जिसे यह सूरह याद हो, तो उसे सुनाएँ। वह आपकी ग़लतियाँ सही कर सकते हैं।
- स्मार्टफोन ऐप्स का उपयोग करें: आज के दौर में बहुत से इस्लामिक ऐप्स हैं जिनमें सूरह मुल्क़ का अरबी पाठ, हिन्दी उच्चारण, तर्जुमा और ऑडियो उपलब्ध है। आप उनका सहारा ले सकते हैं।
सूरह मुल्क PDF डाउनलोड करें (Surah Mulk PDF Download)
आपकी आसानी के लिए, हम यहाँ सूरह मुल्क़ की PDF फ़ाइलें हिन्दी, अरबी (उर्दू के साथ) और इंग्लिश तर्जुमे के साथ डाउनलोड करने का विकल्प दे रहे हैं। इन फ़ाइलों को आप अपने फ़ोन या कंप्यूटर में सेव कर सकते हैं और कभी भी, कहीं भी पढ़ सकते हैं।
सूरह मुल्क़ के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ about Surah Mulk)
सवाल 1: सूरह मुल्क़ पढ़ने से कब्र के अज़ाब से कैसे निज़ात मिलती है?
अहादीस के मुताबिक़, सूरह मुल्क़ को नियमित रूप से पढ़ने वाले के लिए यह सूरह क़यामत के दिन शिफ़ारिश करेगी और कब्र के अज़ाब से बचाने वाली ढाल बनेगी। यह अल्लाह की एक ख़ास रहमत है जो इस सूरह की तिलावत करने वालों को बख़्शी गई है। यह दरअस्ल अल्लाह के वादे और उसके रहम का इज़हार है, जिसके लिए हदीस में इसकी ताकीद की गई है।
सवाल 2: क्या सूरह मुल्क़ को हर रात पढ़ना ज़रूरी है?
यह मुस्तहब (पसंदीदा) है कि इसे हर रात सोने से पहले पढ़ा जाए। नबी-ए-अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) खुद सूरह अल-सज्दा और सूरह मुल्क़ पढ़े बिना नहीं सोते थे। अगर कोई शख़्स रोज़ाना ऐसा करने की कोशिश करे, तो उसे इसकी अज़ीम फ़ज़ीलत हासिल होगी।
सवाल 3: अगर अरबी में पढ़ना मुश्किल हो तो क्या हिन्दी उच्चारण (Transliteration) से पढ़ सकते हैं?
अगर आप अरबी नहीं पढ़ सकते, तो हिन्दी उच्चारण (Transliteration) से पढ़ना जायज़ है ताकि आप सूरह की तिलावत कर सकें और सवाब हासिल कर सकें। हालाँकि, सबसे बेहतर है कि आप किसी क़ारी से सही अरबी तलफ़्फ़ुज़ सीखें और अरबी में ही तिलावत करें, क्योंकि हिन्दी उच्चारण में अरबी के सभी मख़ारिज (उच्चारण के बिंदु) को पूरी तरह से अदा करना मुश्किल होता है।
सवाल 4: क्या सूरह मुल्क़ को सिर्फ़ सुनकर भी फ़ज़ीलत हासिल होती है?
कुरान की तिलावत सुनने का भी यक़ीनन सवाब है। अगर आप सूरह मुल्क़ को ध्यान से सुनते हैं और उसके माअनी (अर्थ) पर ग़ौर करते हैं, तो भी आपको रूहानी फ़ायदे हासिल होंगे। हालांकि, सबसे ज़्यादा फ़ज़ीलत खुद तिलावत करने से मिलती है, क्योंकि उसमें मेहनत और ज़बान की हरकत भी शामिल होती है।
सवाल 5: सूरह मुल्क़ के मुख्य संदेश क्या हैं?
सूरह मुल्क़ के मुख्य संदेशों में अल्लाह की बादशाही और कुदरत, कायनात की तखलीक में उसकी हिकमत, मौत और ज़िन्दगी का मक़सद (आज़माइश), जहन्नम के अज़ाब से डराना, अल्लाह की नेमतों पर ग़ौर करना और क़यामत के दिन जवाबदेही की याद दिलाना शामिल हैं। यह तौहीद (अल्लाह की वहदानियत) पर ज़ोर देती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
दोस्तों, यह थी आज की हमारी पोस्ट "सूरह मुल्क (Surah Mulk) हिन्दी में, सूरह मुल्क की फ़ज़ीलत, तफ़सीर और PDF डाउनलोड" के बारे में। मुझे उम्मीद है कि इस विस्तृत जानकारी से आपको सूरह मुल्क़ की अहमियत, फ़ज़ीलत और इसके गहरे पैग़ाम को समझने में मदद मिली होगी। यह सूरह सिर्फ़ कब्र के अज़ाब से बचाने वाली नहीं, बल्कि हमें अल्लाह की अज़मत और उसके हुक्मों पर ग़ौर करने की दावत भी देती है।
अपनी दुनिया और आख़िरत दोनों को बेहतर बनाने के लिए, सूरह मुल्क़ को अपनी रोज़ाना की आदत में शामिल करें, ख़ासकर सोने से पहले। यह आपको क़ब्र की सख़्ती और क़यामत के दिन की मुश्किलों से बचाने का ज़रिया बन सकती है।
हमारी दुआएं:
- अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमें कुरान पढ़ने, समझने और उस पर अमल करने की तौफ़ीक़ दे। [आमीन]
- अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमें सुन्नत का पाबंद बनाए। [आमीन]
- जब तक हमें ज़िन्दा रखे, इस्लाम और ईमान पर ज़िन्दा रखे। [आमीन]
- हमारा ख़ात्मा ईमान पर हो और हमें कलमा पढ़ना नसीब हो। [आमीन सुम्मा आमीन]
अगर यह जानकारी आपके लिए फायदेमंद साबित हुई हो, तो इसे अपने तमाम दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ ज़रूर शेयर करें। दीन की अच्छी बात को दूसरों तक पहुँचाना भी सदक़ा-ए-ज़ारिया है।
आपकी राय हमारे लिए बेहद अहम है! नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी राय और सवाल ज़रूर लिखें। मज़ीद इस्लामी मालूमात और पोस्ट्स की नोटिफिकेशन पाने के लिए हमें सोशल मीडिया पर फॉलो करना न भूलें।
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