Bakra Eid ki namaz ka tarika in Hindi | Eid ul Adha Namaz Kaise padhe
दोस्तों हम सभी जानते हैं कि ईद उल अजहा (Eid ul Adha) का त्यौहार ईद उल फितर के त्यौहार के बाद इस्लाम का दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार है। पूरी दुनिया के मुसलमान बेहद खुशी के साथ बकरीद का इंतजार करते हैं। यह त्यौहार पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की सुन्नत की अदायगी का नाम है। गौरतलब है कि इस त्योहार का असल पैग़ाम यह है कि, एक इंसान अपने रब की रजामंदी के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर सकता है। यह त्यौहार हमें सिखाता है कि अल्लाह की राह में कोई भी कुर्बानी छोटी नहीं होती, और उसका इनाम बेमिसाल होता है।
दोस्तों पिछली पोस्ट में हमने आपको ईद उल फितर की नमाज पढ़ने का तरीका बताया था, और आज के इस पोस्ट में मैं आपको ईद उल अज़हा यानी Bakrid ki namaz कैसे पढ़ें ? इसका पूरा तरीका, उसकी फज़ीलत, और इससे जुड़ी महत्वपूर्ण सुन्नतों के बारे में बताने जा रहा हूं। यह गाइड आपको नमाज़ से लेकर क़ुर्बानी तक की हर ज़रूरी जानकारी देगा, ताकि आप इस मुबारक दिन को पूरी शिद्दत और सवाब के साथ मना सकें।
विषय-सूची (Table of Contents)
- ईद उल अज़हा (बकरीद) का महत्व और पैगंबर इब्राहिम (अ.स.) की कहानी
- आने वाले वर्षों में Eid ul Adha (बकरीद) कब है? (2024, 2025, 2026)
- बकरीद की नमाज़ से पहले की तैयारी
- बकरा ईद नमाज़ की नियत (Niyat for Bakra Eid Namaz)
- Bakra Eid (Eid ul Adha) की नमाज़ पढ़ने का तरीका (स्टेप-बाय-स्टेप)
- खुत्बा का महत्व और उसके बाद के आदाब
- क़ुर्बानी: ईद उल अज़हा का अहम हिस्सा और उसके नियम
- बकरीद के दिन की सुन्नतें: एक विस्तृत सूची
- बकरीद पर अक्सर की जाने वाली गलतियां और उनसे कैसे बचें
- Eid ul Adha की दुआएं और ज़िक्र
- FAQs: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
- निष्कर्ष
ईद उल अज़हा (बकरीद) का महत्व और पैगंबर इब्राहिम (अ.स.) की कहानी
ईद उल अज़हा, जिसे आम बोलचाल की भाषा में बकरीद के नाम से जाना जाता है, मुसलमानों के लिए केवल एक त्योहार नहीं बल्कि एक गहरे आध्यात्मिक महत्व का दिन है। यह बलिदान (क़ुर्बानी) और अल्लाह पर पूर्ण भरोसे का प्रतीक है। इस मुबारक दिन की जड़ें पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की बेमिसाल कुर्बानी में हैं।
हज़रत इब्राहिम (अ.स.) ने अल्लाह के हुक्म पर अपने इकलौते बेटे, हज़रत इस्माईल (अ.स.) को कुर्बान करने का इरादा किया था। यह एक ऐसी आज़माइश थी जिसमें एक पिता को अपने कलेजे के टुकड़े को अल्लाह की रज़ा के लिए कुर्बान करना था। हज़रत इब्राहिम (अ.स.) बिना किसी हिचकिचाहट के इस हुक्म को मानने के लिए तैयार हो गए, और जब वह अपने बेटे को कुर्बान करने लगे, तो अल्लाह तआला ने उनकी सच्ची नियत और ईमान को देखकर इस्माईल (अ.स.) की जगह एक दुंबे को भेज दिया। यह घटना हमें सिखाती है कि अल्लाह की मोहब्बत में इंसान हर चीज़ कुर्बान करने को तैयार हो जाए, तो अल्लाह उसे बेहतरीन अजर अता करता है।
इस त्योहार का असल पैगाम यही है: अपने 'अना' (अहंकार) और अपनी पसंदीदा चीज़ों को अल्लाह की राह में कुर्बान करना। यह हमें नेकी, तक़वा (अल्लाह का डर), और दूसरों की मदद करने का जज़्बा पैदा करने की तरगीब देता है। ईद उल अज़हा पर की गई क़ुर्बानी न केवल गोश्त बांटने का ज़रिया है, बल्कि यह गरीबों और ज़रूरतमंदों को खुशी में शामिल करने का एक बेहतरीन तरीका भी है।
आने वाले वर्षों में Eid ul Adha (बकरीद) कब है? (2024, 2025, 2026)
ईद उल अज़हा की तारीख इस्लामिक कैलेंडर (हिजरी कैलेंडर) के हिसाब से तय होती है, जो चांद के दीदार पर निर्भर करती है। यह ज़िलहिज्ज महीने की 10वीं तारीख को मनाई जाती है। हालांकि, अलग-अलग देशों में चांद के दिखने के आधार पर तारीख में थोड़ा अंतर हो सकता है। यहाँ कुछ अनुमानित तारीखें दी गई हैं:
साल | अनुमानित तारीख (ग्रेगोरियन) | हिजरी तारीख |
---|---|---|
2024 | 16-17 जून | 10 ज़िलहिज्ज 1445 हिजरी |
2025 | 6-7 जून | 10 ज़िलहिज्ज 1446 हिजरी |
2026 | 26-27 मई | 10 ज़िलहिज्ज 1447 हिजरी |
यह तारीखें केवल अनुमानित हैं और अंतिम घोषणा चांद के दीदार पर ही निर्भर करती है। हमेशा अपने स्थानीय इमाम या इस्लामिक सेंटर से पुष्टि करें।
बकरीद की नमाज़ से पहले की तैयारी: सुन्नतें और आदाब
बकरीद की नमाज़ अदा करने से पहले कुछ तैयारियां करना सुन्नत और सवाब का काम है। ये तैयारियां न केवल आपको शारीरिक रूप से तैयार करती हैं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी इस मुबारक दिन के लिए तैयार करती हैं:
- सुबह जल्दी उठना: ईद के दिन जल्दी उठना और फज्र की नमाज़ अदा करना सुन्नत है।
- ग़ुस्ल (नहाना): नमाज़ के लिए जाने से पहले अच्छे से ग़ुस्ल (नहाना) करें, जैसे किसी खास मौके के लिए करते हैं। यह पाकीज़गी और ताज़गी का एहसास दिलाता है।
- साफ और बेहतरीन कपड़े पहनना: नए या सबसे साफ कपड़े पहनें। यह खुशी और अल्लाह का शुक्र अदा करने का इज़हार है।
- खुशबू लगाना: इत्र या खुशबू लगाना सुन्नत है, खासकर पुरुषों के लिए।
- मिस्वाक (दातुन) करना: दांतों को अच्छी तरह साफ करना पाकीज़गी का हिस्सा है और नमाज़ के लिए तैयार होने का एक अहम कदम।
- ईदगाह या मस्जिद जाना: ईद की नमाज़ आमतौर पर ईदगाह में अदा की जाती है, जो एक खुली जगह होती है, ताकि ज्यादा से ज्यादा मुसलमान एक साथ नमाज़ अदा कर सकें। अगर कोई मजबूरी हो या ईदगाह की सुविधा न हो, तो आस-पास की जामा मस्जिद में नमाज़ अदा की जा सकती है।
- पैदल जाना: अगर मुमकिन हो तो ईदगाह तक पैदल जाना सुन्नत है। इससे सवाब में इज़ाफ़ा होता है और रास्ते में लोगों से मिलने का मौका भी मिलता है।
- रास्ते में तकबीर कहते हुए जाना: ईदगाह जाते हुए ज़ोर-ज़ोर से तकबीरें कहना सुन्नत है। तकबीर ये है: “अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इलल्लाह, वल्लाहु अकबर वल्लाहु अकबर, वलिल्लाहिल हम्द” !
- नमाज़ से पहले कुछ न खाना: ईद उल अज़हा के दिन नमाज़ अदा करने से पहले कुछ भी न खाना सुन्नत है, ताकि आप अपनी क़ुर्बानी के गोश्त से खाकर दिन की शुरुआत करें। यह ईद उल फितर से अलग है, जहाँ नमाज़ से पहले कुछ मीठा खाना सुन्नत है।
- सदका-ए-फितर (ज़रूरत के मुताबिक): हालांकि सदका-ए-फितर मुख्य रूप से ईद उल फितर से जुड़ा है, लेकिन ईद उल अज़हा के दिन भी सदका और खैरात करने की बड़ी फज़ीलत है। गरीबों और ज़रूरतमंदों का ख्याल रखना इस्लाम की अहम तालीमात में से है।
इन सुन्नतों पर अमल करके आप ईद उल अज़हा के दिन को और भी ज्यादा सवाब और बरकत वाला बना सकते हैं।
बकरा ईद नमाज़ की नियत (Niyat for Bakra Eid Namaz)
नमाज़ की नियत दिल से की जाती है, ज़बान से दोहराना ज़रूरी नहीं है, लेकिन सहूलियत के लिए आप ज़बान से भी कह सकते हैं। नियत ये है:
"नियत करता हूं मैं, 2 रकात वाजिब नमाज ईद उल अजहा की, मय ज़ायद 6 तकबीरों के साथ, वास्ते अल्लाह के, रुख मेरा काबा शरीफ के तरफ... अल्लाहु अकबर !"
या आप इस तरह भी नियत कर सकते हैं:
"नियत की मैंने दो रकात नमाज़ ईद उल अज़हा की, छह ज़ायद तकबीरों के साथ, वास्ते अल्लाह तआला के, पीछे इस इमाम के, मेरा मुँह काबे शरीफ़ की तरफ, अल्लाहु अकबर।"
नियत करने के बाद, हाथ बांधते हुए 'अल्लाहु अकबर' कहें।
Bakra Eid (Eid ul Adha) की नमाज़ पढ़ने का तरीका (स्टेप-बाय-स्टेप गाइड)
ईद उल अज़हा की नमाज़ 2 रकात वाजिब नमाज़ है जिसमें आम नमाज़ों के मुकाबले कुछ ज़ायद (अतिरिक्त) तकबीरें होती हैं। इन तकबीरों की वजह से यह नमाज़ थोड़ी अलग होती है। नीचे दिए गए स्टेप-बाय-स्टेप तरीके से आप इसे आसानी से अदा कर सकते हैं:
पहली रकात का तरीका:
- नियत: सबसे पहले नमाज़ की नियत करें (जैसा ऊपर बताया गया है)। दिल में इरादा करें कि आप ईद उल अज़हा की 2 रकात वाजिब नमाज़ अदा कर रहे हैं।
- तकबीर-ए-तहरीमा: इमाम के साथ 'अल्लाहु अकबर' कहते हुए अपने हाथों को कंधों या कानों तक उठाएं और फिर नाफ़ के नीचे बांध लें।
- सना पढ़ना: हाथ बांधने के बाद 'सना' (सुभानकल्लाहुम्मा व बिहम्दिका व तबारकस्मका व तआला जद्दुका व ला इलाहा गैरुक) पढ़ें।
- ज़ायद तकबीरें (अतिरिक्त तकबीरें) - पहली रकात:
- सना पढ़ने के बाद इमाम साहब तीन ज़ायद तकबीरें कहेंगे।
- पहली तकबीर: इमाम 'अल्लाहु अकबर' कहें, आप भी 'अल्लाहु अकबर' कहते हुए अपने दोनों हाथ कानों तक ले जाकर छोड़ दें।
- दूसरी तकबीर: फिर इमाम 'अल्लाहु अकबर' कहें, आप भी 'अल्लाहु अकबर' कहते हुए अपने दोनों हाथ कानों तक ले जाकर फिर छोड़ दें।
- तीसरी तकबीर: तीसरी बार इमाम 'अल्लाहु अकबर' कहें, आप भी 'अल्लाहु अकबर' कहते हुए अपने दोनों हाथ कानों तक ले जाकर इस बार बांध लें (यह तकबीर-ए-तहरीमा की तरह होगी)।
- किरात: इसके बाद इमाम साहब सूरतुल फातिहा (अलहम्दु शरीफ) और कोई एक दूसरी सूरत (जैसे सूरह काफिरून, सूरह इखलास) पढ़ेंगे। आपको खामोशी से सुनना है।
- रुकू और सजदा: किरात के बाद इमाम के साथ रुकू (झुकना) और दो सजदे (माथा ज़मीन पर रखना) अदा करें, जैसे आम नमाज़ में करते हैं।
- दूसरी रकात के लिए खड़ा होना: सजदों के बाद 'अल्लाहु अकबर' कहते हुए दूसरी रकात के लिए खड़े हो जाएं।
दूसरी रकात का तरीका:
- किरात: दूसरी रकात में खड़े होते ही इमाम साहब सबसे पहले सूरतुल फातिहा और कोई दूसरी सूरत (जैसे सूरह कौसर, सूरह नस्र) पढ़ेंगे। आपको फिर से खामोशी से सुनना है।
- ज़ायद तकबीरें (अतिरिक्त तकबीरें) - दूसरी रकात:
- किरात मुकम्मल होने के बाद इमाम साहब फिर से तीन ज़ायद तकबीरें कहेंगे।
- पहली तकबीर: इमाम 'अल्लाहु अकबर' कहें, आप भी 'अल्लाहु अकबर' कहते हुए अपने दोनों हाथ कानों तक ले जाकर छोड़ दें।
- दूसरी तकबीर: फिर इमाम 'अल्लाहु अकबर' कहें, आप भी 'अल्लाहु अकबर' कहते हुए अपने दोनों हाथ कानों तक ले जाकर फिर छोड़ दें।
- तीसरी तकबीर: तीसरी बार इमाम 'अल्लाहु अकबर' कहें, आप भी 'अल्लाहु अकबर' कहते हुए अपने दोनों हाथ कानों तक ले जाकर फिर छोड़ दें।
- चौथी तकबीर (रुकू के लिए): इन तीन ज़ायद तकबीरों के फौरन बाद, इमाम चौथी तकबीर 'अल्लाहु अकबर' कहेंगे और इस बार हाथ उठाए बिना सीधे रुकू में चले जाएंगे। आपको भी यही करना है।
- रुकू और सजदा: रुकू के बाद दो सजदे अदा करें, जैसे आम नमाज़ में करते हैं।
- अत्तहियात, दरूद और दुआ: सजदों के बाद बैठ जाएं और अत्तहियात (तशह्हुद), दरूद शरीफ (दरूद-ए-इब्राहीमी) और कोई भी दुआ (जैसे दुआ-ए-मासूरा) पढ़ें।
- सलाम फेरना: पहले दाहिने कंधे की तरफ मुंह करते हुए 'अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह' कहें और फिर बाएं कंधे की तरफ मुंह करते हुए 'अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह' कहें।
इस तरह आपकी ईद उल अजहा (बकरीद) की नमाज़ पूरी हो जाएगी।
नोट : ईद की नमाज़ में इन ज़ायद तकबीरों को अदा करना वाजिब है। अगर आप गलती से कोई तकबीर छोड़ दें तो नमाज़ फासिद (खराब) हो सकती है। इसलिए बहुत एहतियात से इमाम की पैरवी करें।
खुत्बा का महत्व और उसके बाद के आदाब
ईद की नमाज़ के बाद खुत्बा सुनना सुन्नत है और इसका बहुत सवाब है। बहुत से लोग नमाज़ के फौरन बाद ईदगाह से निकल जाते हैं, जो कि सही नहीं है। खुत्बा में इमाम साहब ईद उल अज़हा के महत्व, क़ुर्बानी की फज़ीलत, और इस्लामी तालीमात के बारे में बताते हैं। यह हमें अल्लाह से करीब होने और दीनी इल्म हासिल करने का मौका देता है।
खुत्बा सुनने के बाद, एक-दूसरे को ईद मुबारकबाद देना और गले मिलना सुन्नत है। यह भाईचारे और मोहब्बत का इज़हार है। नमाज़ के बाद वापसी के लिए जिस रास्ते से आप ईदगाह गए थे, उस रास्ते से वापस न आएं, बल्कि किसी दूसरे रास्ते से वापस आएं। इसका मक़सद ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलना और मुबारकबाद का सिलसिला बढ़ाना है। यह भी सुन्नत है कि रास्ते में तकबीरें कहते हुए जाएं और आएं।
क़ुर्बानी: ईद उल अज़हा का अहम हिस्सा और उसके नियम
ईद उल अज़हा का सबसे महत्वपूर्ण और पहचान वाला हिस्सा क़ुर्बानी है। यह हज़रत इब्राहिम (अ.स.) और हज़रत इस्माईल (अ.स.) की सुन्नत को ज़िंदा रखने और अल्लाह की रज़ा हासिल करने का एक ज़रिया है।
क़ुर्बानी का महत्व और फज़ीलत:
- क़ुर्बानी अल्लाह का क़ुर्ब हासिल करने का बेहतरीन ज़रिया है।
- यह उन लोगों पर वाजिब है जो साहिबे निसाब हों (यानी जिनके पास ज़रूरत से ज्यादा माल हो)।
- क़ुर्बानी का गोश्त तीन हिस्सों में तक़सीम करने की सलाह दी जाती है: एक हिस्सा गरीबों और ज़रूरतमंदों के लिए, दूसरा हिस्सा दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए, और तीसरा हिस्सा अपने घर के लिए।
क़ुर्बानी के ज़रूरी नियम (शरइ शर्ते):
- क़ुर्बानी का जानवर: ऊँट, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, दुम्बा। मुर्गी, बत्तख या दूसरे परिंदों की क़ुर्बानी जायज़ नहीं।
- जानवर की उम्र:
- ऊँट: कम से कम 5 साल।
- गाय/भैंस: कम से कम 2 साल।
- भेड़/बकरी/दुम्बा: कम से कम 1 साल। (अगर भेड़/दुम्बा 6 महीने का हो और देखने में एक साल जैसा लगे तो उसकी क़ुर्बानी भी जायज़ है)।
- जानवर का स्वस्थ होना: जानवर बिल्कुल तंदरुस्त होना चाहिए। कोई बीमारी, अपंगता (जैसे लंगड़ापन, एक आंख का न होना, कान का कटा होना, दांतों का टूटा होना) नहीं होनी चाहिए जो उसकी सेहत को बुरी तरह प्रभावित करती हो।
- क़ुर्बानी का वक्त: ईद उल अज़हा की नमाज़ के बाद से लेकर ज़िलहिज्ज की 12वीं तारीख के सूरज डूबने तक क़ुर्बानी की जा सकती है। रात में क़ुर्बानी करना मकरूह है, इसलिए दिन में ही करना बेहतर है।
क़ुर्बानी का असल मक़सद गोश्त हासिल करना नहीं, बल्कि अल्लाह की रज़ा और उसके हुक्म की पैरवी करना है। यह हमें त्याग और तक़वा का सबक सिखाती है।
बकरीद के दिन की सुन्नतें: एक विस्तृत सूची
बकरीद (Eid ul Adha) का दिन मुसलमानों के लिए अल्लाह की नेमतों और बरकतों से भरा होता है। इस दिन नमाज़ और क़ुर्बानी के अलावा भी कई सुन्नतें हैं जिन पर अमल करने से सवाब में इज़ाफ़ा होता है और हमारे प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की तालीमात पर अमल होता है। लोग सिर्फ यही समझते हैं कि बकरीद के दिन नमाज पढ़कर कुर्बानी कर देने से कुर्बानी कुबूल हो जाएगी। हां! कुबूल तो हो जाएगी लेकिन बकरीद की सुन्नतों को अदा करने का सवाब अलग है:
- सुबह जल्दी उठना: ईद के दिन फज्र की नमाज़ के लिए जल्दी उठना और उसे अदा करना सुन्नत है।
- ग़ुस्ल करना: नमाज़ से पहले पाक-साफ होने के लिए ग़ुस्ल (नहाना) करना।
- पाक-साफ कपड़े पहनना: सबसे बेहतरीन, नए या धुले हुए कपड़े पहनना, जो सादगी और शालीनता दर्शाते हों।
- खुशबू लगाना: पुरुषों के लिए खुशबू या इत्र लगाना। यह खुशी और साफ-सुथरे रहने का इज़हार है।
- मिस्वाक (दातुन) करना: नमाज़ के लिए जाने से पहले मिस्वाक करना, जो मुंह की सफाई के लिए बेहतरीन है।
- ईदगाह में नमाज़ पढ़ना: ईद की नमाज़ खुले मैदान (ईदगाह) में अदा करना सुन्नत है। अगर कोई शरीयत के मुताबिक मजबूरी हो (जैसे बहुत तेज़ बारिश या महामारी), तो आस-पास की जामा मस्जिद में नमाज़ अदा कर सकते हैं।
- ईदगाह में जल्दी दाखिल होना: ताकि नमाज़ के लिए अच्छी जगह मिल सके और इमाम की किरात को पूरी तरह सुना जा सके।
- पैदल जाना: अगर मुमकिन हो तो ईदगाह तक पैदल जाना, ताकि रास्ते में ज्यादा लोगों से मुलाकात हो और सब को ईद मुबारक कहा जा सके।
- नमाज़ के लिए जाने से पहले कुछ न खाना: ईद उल अज़हा के दिन नमाज़ से पहले कुछ भी न खाना सुन्नत है, ताकि क़ुर्बानी का पहला गोश्त खाकर दिन की शुरुआत करें।
- रास्ते में तकबीर पढ़ते हुए जाना: ईदगाह जाते और आते वक्त ज़ोर-ज़ोर से तकबीरें पढ़ते हुए जाना। तकबीर ये है: “अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इलल्लाह, वल्लाहु अकबर वल्लाहु अकबर, वलिल्लाहिल हम्द” !
- जिस रास्ते से नमाज़ पढ़ने गए थे उस रास्ते से वापस न आना: यह सुन्नत इसलिए है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों से मुलाकात हो सके और मुबारकबाद का सिलसिला बढ़ सके।
- खुत्बा सुनना: नमाज़ के बाद इमाम का खुत्बा ध्यान से सुनना। यह नमाज़ का एक ज़रूरी हिस्सा है और इसमें दीन की अहम बातें बताई जाती हैं।
- मुबारकबाद देना: नमाज़ और खुत्बा के बाद एक दूसरे को 'ईद मुबारक' कहना और गले मिलना। यह आपस में मोहब्बत और भाईचारे को बढ़ाता है।
- ज़िक्र और दुआएं करना: इस मुबारक दिन पर खूब ज़िक्र (अल्लाह का नाम लेना) और दुआएं करना चाहिए।
इन सुन्नतों पर अमल करके हम ईद के दिन को और भी ज्यादा बरकत वाला और अल्लाह की रज़ा हासिल करने वाला बना सकते हैं।
बकरीद पर अक्सर की जाने वाली गलतियां और उनसे कैसे बचें
ईद उल अज़हा का दिन इबादत, त्याग और खुशी का संगम है। इस मुबारक दिन पर कुछ ऐसी गलतियां हैं जिनसे बचना चाहिए ताकि हम इस दिन का पूरा सवाब हासिल कर सकें और इसकी रूह को बरकरार रख सकें:
- खुत्बा न सुनना: बहुत से लोग नमाज़ के बाद फौरन ईदगाह से निकल जाते हैं और खुत्बा नहीं सुनते। खुत्बा सुनना सुन्नत है और इसमें दीन की अहम तालीमात होती हैं। इसलिए नमाज़ के बाद खुत्बा को पूरा सुनना चाहिए।
- नमाज़ में ज़ायद तकबीरों को नज़रअंदाज़ करना: ईद की नमाज़ में ज़ायद तकबीरों का बहुत महत्व है। इन्हें सही तरीके से अदा न करने से नमाज़ में कमी आ सकती है। इमाम की पैरवी करते हुए इन तकबीरों को ठीक से अदा करें।
- खुशी में हद से ज़्यादा मसरूफ हो जाना: ईद का दिन खुशी का है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम अल्लाह की इबादत और याद से गाफिल हो जाएं। दिन भर अल्लाह का ज़िक्र, दुआएं और नेकी के काम करते रहें।
- क़ुर्बानी में लापरवाही:
- जानवर की सेहत: ऐसे जानवर की क़ुर्बानी करना जो शरीयत के हिसाब से जायज़ न हो (जैसे बहुत कमज़ोर, बीमार या अपाहिज)।
- नीयत में खराबी: क़ुर्बानी सिर्फ अल्लाह की रज़ा के लिए होनी चाहिए, दिखावे के लिए नहीं।
- गोश्त का सही तक़सीम न करना: गोश्त का सिर्फ अपने लिए रख लेना और गरीबों और ज़रूरतमंदों को नज़रअंदाज़ करना।
- फ़ुज़ूलखर्ची और दिखावा: ईद पर ज़रूरत से ज़्यादा खर्चना, खासकर दिखावे के लिए, इस्लाम में पसंद नहीं किया गया है। सादगी और शुक्रगुज़ारी का दामन थामे रखें।
- गैर-ज़रूरी काम या गुनाहों में मुब्तला होना: ईद के बहाने ऐसे काम करना जो इस्लाम में हराम हों (जैसे गाने-बजाने, फेशियल गेम्स, या दूसरों को तकलीफ़ देना)। इस दिन को इबादत और नेकी के कामों में गुज़ारें।
- सुलह-सफाई न करना: अगर किसी से नाराजगी है, तो ईद के दिन उसे सुलह करके गले मिलना चाहिए। यह भाईचारे और मोहब्बत का बेहतरीन मौका है।
इन गलतियों से बचकर हम ईद उल अज़हा की रूह को समझ सकते हैं और इस मुबारक दिन का पूरा सवाब हासिल कर सकते हैं।
Eid ul Adha की दुआएं और ज़िक्र
ईद उल अज़हा के दिनों में अल्लाह का ज़िक्र और दुआएं करना बहुत फज़ीलत वाला है। खासकर 'तकबीरात अल-तशरीक़' (Takbeerat al-Tashreeq) का ज़िक्र इन दिनों की खास इबादत है।
तकबीरात अल-तशरीक़ (Takbeerat al-Tashreeq)
यह ज़िलहिज्ज की 9वीं तारीख की फज्र की नमाज़ से शुरू होकर 13वीं तारीख की अस्र की नमाज़ तक, हर फर्ज़ नमाज़ के बाद पढ़ना वाजिब है।
अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इलल्लाह, वल्लाहु अकबर वल्लाहु अकबर, वलिल्लाहिल हम्द
(अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, और अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह सबसे बड़ा है, और तमाम तारीफें अल्लाह के लिए हैं।)
नमाज़ के बाद की दुआएं:
ईद की नमाज़ के बाद और दिन भर में आप अपनी पसंद की कोई भी दुआ पढ़ सकते हैं, अल्लाह से अपनी हाजतें मांग सकते हैं। कुछ सामान्य दुआएं जो आप पढ़ सकते हैं:
- रब्बना आतिना फिद्दुनिया हसनतंव व फिल आखिरति हसनतंव व किना अज़ाबन्नार। (ऐ हमारे रब! हमें दुनिया में भी भलाई दे और आखिरत में भी भलाई दे और हमें आग के अज़ाब से बचा।)
- अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुकल जन्नत व अऊज़ुबिका मिनन्नार। (ऐ अल्लाह! मैं तुझसे जन्नत का सवाल करता हूं और जहन्नम की आग से पनाह मांगता हूं।)
- अल्लाहुम्मा सल्ली अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मदिन कमा सल्लैता अला इब्राहीमा व अला आलि इब्राहीमा इन्नका हमीदुम मजीद। (यह दरूद-ए-इब्राहीमी है, नमाज़ के आखिर में पढ़ा जाता है।)
इन दुआओं के अलावा अपनी ज़बान में अल्लाह से जो चाहें मांगें, दिल से मांगी गई हर दुआ कुबूल होती है।
FAQs: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (Bakrid & Eid ul Adha Namaz)
Bakra eid 2025 कब है ?
6 जून 2025 या 7 जून 2025 को bakra eid होने की संभावना है। यह चांद के दीदार पर निर्भर करता है।
बकरीद की नमाज़ कितने रकात की होती है ?
बकरीद की नमाज़ 2 रकात वाजिब की होती है, जिसमें 6 ज़ायद (अतिरिक्त) तकबीरें होती हैं।
बकरीद की नमाज़ मस्जिद में अदा कर सकते हैं या नहीं ?
नहीं, बिना किसी शरीयत के मुताबिक मजबूरी के (जैसे बहुत तेज़ बारिश, महामारी, या ईदगाह की सुविधा न होना) ईद की नमाज़ मस्जिद में अदा करना मना है। सुन्नत यह है कि ईदगाह (खुले मैदान) में अदा की जाए। मजबूरी की सूरत में मस्जिद में अदा कर सकते हैं।
Eid ul Adha की नमाज़ में कितनी तकबीरें होती हैं ?
Eid ul Adha की नमाज़ में 6 ज़ायद तकबीरें होती हैं (पहली रकात में 3 और दूसरी रकात में 3)। इनके अलावा एक तकबीर-ए-तहरीमा और एक रुकू वाली तकबीर भी होती है।
क्या औरतें घर पर बकरीद की नमाज़ पढ़ सकती हैं?
इस्लामी शरीयत के अनुसार, औरतों पर ईद की नमाज़ वाजिब नहीं है, और उन्हें ईदगाह जाने की भी ज़रूरत नहीं है। वे अपने घर पर सामान्य नमाज़ (नफ्ल नमाज़) अदा कर सकती हैं या अल्लाह का ज़िक्र और दुआएं कर सकती हैं।
अगर ईद की नमाज़ छूट जाए तो क्या करें?
अगर किसी वजह से आपकी ईद की नमाज़ छूट जाए, तो आप उसे क़ज़ा नहीं कर सकते। क्योंकि ईद की नमाज़ जमात के साथ ही अदा की जाती है। हालांकि, आप अपने घर पर या मस्जिद में दो रकात नफ्ल नमाज़ अदा कर सकते हैं।
क़ुर्बानी कब तक की जा सकती है?
क़ुर्बानी ईद उल अज़हा की नमाज़ के बाद से लेकर ज़िलहिज्ज की 12वीं तारीख के सूरज डूबने तक की जा सकती है। यानी कुल तीन दिन (10, 11, 12 ज़िलहिज्ज)।
क़ुर्बानी का गोश्त किस तरह तक़सीम करें?
क़ुर्बानी के गोश्त को तीन बराबर हिस्सों में बांटने की सलाह दी जाती है: एक हिस्सा गरीबों और ज़रूरतमंदों को दें, दूसरा हिस्सा दोस्तों और रिश्तेदारों को दें, और तीसरा हिस्सा अपने परिवार के लिए रखें।
निष्कर्ष
दोस्तों, उम्मीद है कि बकरीद (Eid ul Adha) की नमाज का तरीका, उसके नियम, सुन्नतें, और इस मुबारक दिन से जुड़ी तमाम ज़रूरी जानकारी आपको इस विस्तृत गाइड में मिल गई होगी। ईद उल अज़हा का त्योहार हमें सिर्फ खुशी मनाने का ही नहीं, बल्कि त्याग, अल्लाह पर भरोसा, और दूसरों के प्रति हमदर्दी का भी पैगाम देता है। हज़रत इब्राहिम (अ.स.) की बेमिसाल कुर्बानी से प्रेरणा लेकर, हमें अपने जीवन में भी अल्लाह की रज़ा हासिल करने के लिए हर कुर्बानी देने को तैयार रहना चाहिए।
यह एक ऐसा दिन है जब हम अपनी दौलत और समय को अल्लाह की राह में लगाते हैं, गरीबों और मोहताजों का ख्याल रखते हैं, और भाईचारे व एकता का मज़बूत पैगाम दुनिया को देते हैं। अल्लाह ताआला हम सबकी इबादतों और क़ुर्बानियों को क़ुबूल फरमाए, और हमें इस मुबारक दिन की तमाम बरकतें अता फरमाए।
इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ भी सदका-ए-ज़ारिया की नियत से जरूर शेयर करें, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस मुकद्दस दिन की फज़ीलतों से फायदा उठा सकें। हमारी टीम की तरफ से आपको और आपके परिवार को एडवांस में Bakra Eid Mubarak 🤗💖🕌🕋🌜. अल्लाह हाफ़िज़!